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मार्यमतलीशा ॥
को मुक्तिका सुख भुगाकर" | वा हमारे लिये तो सब जानते हैं प इस प्रकार किन शब्दों का अर्थ किया रंतु आप के गुरू ने ऐसी कौनसी प्र गया है । स्वामी जी के वेदभाष्य से भुत अष्टाध्यायी व्याकरण आप को मालूम हुआ कि यह अर्थ "नः" शब्द दिया है जिस के आधार पर के किये गये हैं और इस प्रकार अर्थ
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किए हैं
संस्कृत पदार्थ प्रथम मंत्र
( नः ) अस्मान् भाषापदार्थ प्रथममंत्र (नः) मोक्षको प्राप्त हुए भी हमलोगोंको । संस्कृतपदार्थ दूमरामंत्र
"
मोक्षको प्राप्त
शब्द का अर्थ आप ने हुवे भी हम लोगों, ऐसा करके बारे मंत्र का ही अर्थ बदल दिया और मुक्ति से लौटना वेदों में दिखाकर सर्व पूर्वाचार्यो के वाक्य झूठे कर दिये
इन मंत्रों (ऋचाओंों ) का जो अर्थ स्वामी जी ने सत्यार्थप्रकाश में किया है उसका अभिप्राय तो यह मालम होता है कि इन मंत्रों के द्वारा ईश्वर ने जगत् के मनुष्यों को यह सिखाया है कि माता पिता के दर्शन इतने आवश्यक हैं कि उन के वास्ते मुक्ति से लौटकर फिर जन्म लेने की आवश्य का है। इस हो वास्ते प्रथम मंत्र में उम महान् देवता की खोज की गई है जो जोत्र का यह भारी उपकार कर कर दे कि लौटकर माता पिता के द.
करादे और दूसरे मंत्र में उत्तर दिया गया है कि ऐना उपकारी महान् देव परमेश्वर ही है परन्तु वेदभाष्य में स्वामी दयानंद को इन से भी प्रगाड़ी बढ़े हैं और प्रथम मंत्र के अर्थ में इस प्रकार लिखा है :
जिसमे कि हम लोग पिता श्रीर
(म ) अस्मभ्यम्
"
भाषापदार्थ दूसरा मंत्र ( नः ) हमकोहम को चर्य है कि प्रथममंत्र के भाषा में जो "नः " शब्द का अर्थ "मोक्ष को प्राप्त हुए लोगों को क्रिया | भो हम गया है वह कमरगा वा कोश के आधार पर किया गया है ? शायद स्वामी जी के पास कोई गुप्त पुस्तक हो वा परमेश्वर ने स्वामी जी के कान में कह दिया हो कि यद्यपि शब्दार्थसेशन मालूम नहीं होता परन्तु मेरा अभिप्राय ही यह है और इस अभिमा को मैं ने आज तक किमी पर नहीं खोला एक तुम पर ही खोलता हूं। क्योंकि तुम साक्षात् सरस्वती हो
प्यारे भाइयो ! दयानन्द जो इम एक "मः" शब्द के अपने कल्पित अर्थ के ही प्राधार पर यह मिट्ट करना चा हते हैं कि मुक्ति प्राप्त होकर भी जी फिर जन्म लेता है परन्तु स्वामी जी से कोई पूछे कि "नः” के अर्थ हम को
माता और बी पुत्र बन्धु आदि को देखने की इच्छा करें
और दूसरे मंत्र के अर्थ में इस प्र कार लिखा है