________________
-
कार्यमतलीला॥
(९१) ऋग्वेद मप्तम मंठग सूक्क २९ ऋ० १ । हे यापते आदि भूत पाप उत्तम हे बहुधन और प्रशस्त मनुष्य युक्त क्रिया के साथ अत्युत्तमता से गृहीत दारिद्रय बिनाने वाले जो यह सोम दान के कारण क्रिया से सिद्ध किये रस, जिपको मैं तो सम्हारे लिये हुए सोमरम को अच्छे प्रकार पित्रो। खींचता हूं उस को तुम पी मा घह श्रेष्ठ हे धारणा करने वाले के पत्रो नायक गृह जिसका है ऐसे होते हुए पात्रो | मनुष्यो जैमे अच्छे प्रकार मिले हुए इम सुन्दर निर्माण किये और सुन्दर
श्वेत वर्ण पारे जन अच्छी क्रियाओं जन के धनों को प्राप्त होते हुए हमारे से युक्त प्राप्ति कराने वाली पवन की लिये देखो।
गतियों से प्राप्त हुए ममय में और का. काग्वेद छठा संत्रस्न सूक्त ४० व ४९ ऋ० |
मना करते हुओं में अन्तरिक्ष को प.
हुंच कर पवित्र व्यवहार में उत्पन्न पीने योग्य मोमलताको रसको पीने हुए प्रकाश से सोमरस को पीते हैं। के लिये समीप प्राप्त इजिये।
तुम पित्रो। उत्पन्न किये गये लता आदि के मृद दूसरा मंडल मुक्त ४१ ऋ४ जन पवित्र यी है उसके ममीप आइये! “ हे...अध्यापको ! जो यह तुन दोनों
बंद छटा मउगा सक्त ५ मा १० मे मोनरम उत्पन्न हुमा उसको पोके | उत्तम शिक्षालवाशियों के माथ इम ही यहां मेरे आवाहनको सुनि--, सोम के पीने को प्रायो।
ऋग्वेद घटा मंजुम भक्त ४३ ऋ० १ ऋग्वेद तीसरा मन सूक्त ४२ झ ४ "यह ( मोम ) बुद्धि और बन का
सोमरसके पीने के वास्ते ( जिम प्र- बहाने बास्ना रस आपके लिये उत्पन्न स्यंत विद्या आदि ऐश्वर्य वालको इम किया गया है उसका आप पान करिसंमार में पुकारे धद हम लोगों के म-17
ये।, मीप बहुत बार सायं ।
ऋग्वेद तीमरा मंउग्न सूक्त ३२ ऋ५ ऋग्वेद पंचम मंडन रक्त ११ ऋचा ३ ! “निरनर अनादि भिद्ध बलके लिये |
हे मित्र श्रेष्ठ ! आप दोनों सम देने | सोम रसको पीयो-." वाले के सोमरम को पीने के लिये हम । ऋग्वंद तीमरा मंडल मक्त ५१ ऋ०१० लोगों के उत्पन्न किये हुए पदार्थ के “आप बलसे इसके एप्त सिद्ध किये समीप में प्राइये।
गये सोमलता रूप रसका पान कीजिये सोम की प्रशंपा और पीने की प्रेर-निश्चमे और पान करने की इच्छा से गा में अनेक गीत गाये गये हैं उन में इस मोमलताका पान करो-." से पार हम यहां लिखते हैं। ऋग्वद मंडल चोथा भक्त ४ ऋ:५६ ऋग्वद इमरा मडल मक्त ३६ ऋ० १.२ " हे अध्यापक ! और उपदेशक ज