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मार्यमतलीला ।
(८३) में मम बैल और गाडीवान प्रादि | अति विस्तार युक्त अंतरिक्ष से रहने मेरी नवीन व्याती दूध देने हारी गाय तथा जलका ग्रहण करनेवाला मेघ है और नसको दोहने बाला जन ये मब तम और इम बिद्या को जगदीश्वर
सम्हारे लिये कृपा करके जनाधे । वि. पशुशिक्षा रूप पक्षकर्म से समर्थ हो ।।
द्वान् पुरुष भी पृथिवी की त्वचा के ! [यज्ञेन कल्पन्ताम् का प्रार्थ पशु |
समान उक्त घरकी रचना को जाने । शिक्षा सूप यज्ञ कर्म में समर्थ हो कि
(नोट) छम से मालूम होता है कि
उस समय सघ लोग घर बनाकर नहीं ___ यजर्वेद अध्याय २४ चा १२ ।
| रहते थे वरन गंवारों से भी अधिक जो ऐसे हैं कि जिनकी नीन में ये गाते हों की रक्षा करने वाली है।
__ यजर्वेद तीमरा अध्याय ऋ० ४४ लिये जिनके पांच भेटे हैं ये तीन प्र
हम लोग विद्या रूपी दुःख होने ति शरीर वाणी और मनसंबन्धी से अलग होके बराबर प्रीति के सेवन | मुखों के स्थिर करमेके लिये जो बि.
फरने और पके हुए पदार्थों के भोजन नाश में न प्रसिद्ध हों उन की प्राप्ती |
करने वाले अतिथि लोग और यज्ञ ककराने वाले मंमार की रक्षा करने | रने वाले बिष्ट्वान् लोगों को सत्कार की जो क्रिया उसके लिये जिन के पर्वक नित्यप्रति बनाते रहें। तीन बछड़ा वा जिनके तीन स्थानों में |
(नोट) इमसे मालूम होता है कि उस निवास वे पीछे से रोकने की क्रिया के समय के लोग ऐसे गंमार थे कि सब लिये और जो अपने पशुओं में चौथे
भोजन को पकाकर नहीं खाते थे घरन को प्राप्त कराने वाले हैं वसिम क्रिया जो कोई २ भोजन पकाकर खाता था। से उत्तमताके साथ प्रमन्न हों उम क्रिया | वह बड़ा गिना जाता था। के लिये अच्छा यन करें व सुखी हों। यजुर्वेद छठा अध्याय ऋ० २८
यजुर्वेद प्रथम अध्याय ऋचा १४ । हे वैश्यजन ! तू हल जोतने योग्य है हे मनुष्यो तुम्हारा घर सुख देनेवा- | तुझे अन्तरिक्ष के परिपूर्ण होने के लिये ला हो। उम घर से दुष्ट स्वभाव वाले अच्छे प्रकार उत्कर्ष देता हूं तुम सब प्रामी अलग करो और दान आदि | लोग यज्ञ शोधित जलों से जल और धर्म रहित शत्र दूर हो । उक्त गृह प- औषधियों से औषधियों को प्राप्त थिवी की त्वचा के तुल्य हों । ज्ञान होमो । स्वमुप ईश्वर ही से उस घर को सब यजर्वेद १९ वां अध्याय ऋ० २१ मनुष्य जाने और प्राप्त हों तथा जो| हे मनुष्यो तुम लोग होम करने योग्य बनस्पती के निमित्त से उत्पन्न होने यंत्र द्वारा खींचने योग्य औषधि रूप