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प्रार्यमतलीला ॥
मत जीव ब्रह्म में रहकर | ऐसी दशा में वह कौन से अंग में र.. सदा आनन्द में रहता है |हना है और शेष अंग किस प्रकार. स्वामी जी के इन वाक्यों के साथ जब
जीवित रहता है? इन बातों के ल. आप इस वाक्य पर ध्यान देंगे कि. |
त्तर देने में आप को बहुत कठिनाई मुक्ति जीव ब्रह्म में बास करता है। प्राप्त होगी। इस कारण आपको नि. तो सभ का अर्थ स्पष्ट नाप को यहाँ
|श्चय रूप यह ही मानना पड़ेगा कि प्रतीत होगा. मुक्त जीव ब्रह्म ही जीवात्मा में मंकोच विस्तार की शक्ति हो जाता है--परन्त स्वामी जी ने
है नम की परिमाणबद्ध कोई लम्बाइस बात की रलाने के वास्ते ऐसीई चौडाई नहीं है बरश जैमा शीर ऐमी वतकी बात मिनाई हैं कि मक्त | उम को मिलता है उम होके परिमाया . जोध इच्छा के अनुमार संकल्प मग जीव नम्बा चौड़ा हो जाता है और । शरीर बनाकर ब्रह्म में विचरता रहताहै। बान्नक अवस्था मे वृद्धावस्या तक ज्यों
स्वामी दयानन्द मरम्वती जी यह | ज्यों शरीर बढ़ता वा घटना रहता है तो मानते हैं कि मनष्य का जीव ज-3 प्रकार जीवकी लम्बाई चौडाई न्मान्तर में अन्य पण पक्षी का शरीर भी घटनी बढ़ती रहती है और यदि धारण कर लेता है परन्त हाथी का | शरीर का कोई अंग कट जाना है तो शरीर बहुत बड़ा है और धीवटी का मोव मंकोच कर शेप शरीर में रहनाबाहुन छोटा और बहनमे मे भी की छे । ता है इस प्रकार ममझाने के पश्चात् हैं जो चीयटी में भी बहुत छोटे हैं। हम स्वामी दयानन्द जी मे पछते हैं
और मनष्य का मंझना शरीर है इम कि जीव मुक्ति पाकर कित्तमा नम्बा कारण हम म्यानी जी से पछते हैं कि चौटा रहता है : भिम प्रकार मंमार जीवात्मा स्वाभाविक कितना लम्बा में अनेक जीवों के शरीर का परिमाचौला, क्या जीव की नम्बाईची गा है कि हाथी का शरीर यहा और हाई परिमागद है और लोष्टी अडीचीवटी का शरीर बहुत छोटा रमही नहीं हो सकती ? यदि ऐमा है तो प्रकार का मुक्त जीव का कोई परिजोत्र चीबदी आदिक छोट जाया का मागा है वा जिम शरीर मे मुक्ति हो. जन्म धारणा करके शरीर में बाहर ही है उतना परिमाया मुक्त जीय का निकला रहता होगा और द्वायी प्रा- होना है। शिक बाई जीवों का जन्म या कर-! इम के उत्तर में यही कहना पके जीवात्मा शरीर के किसी एक बैगा कि मुक्ति जीव को मुक्ति होने के नंग में रहना होगा और प अंग ममय घर ही नम्बाई चौड़ाई होगी की ने रहित ही रहना होगा परंतु जाप मनुष्य शरीर की थी जिनको