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प्रायमतलीला ॥
दयानन्द जीके और किसी का भी नहीं, वका शदु होगामा है. ऐमी मोटी और हो मकता है कि निराधी मुक्त मोधी है कि इसके वास्ते किमी देत मोवी ' म्हम् संमार में फंसाकर की जमरत नहीं है परन्त स्वामी दअपरा : सखरखें।
यानन्द के प्रमो : भोले भाइयों के मम. | पाउ। .या ! वही दो ही तो झाने के वास्ते हमने स्त्रान् स्वामीजी । पकवा हैं एक बंध को दूसरी मोक्ष की बनाई पम्त माग्दादि माध्यमपद दोनों अवस्था प्रति पक्षी हैं। बंधमका भी नव विदिया है न शब्द हो इस बात को बता रहा है पर भी यदि किमी भाइको यह शंका कि जब तक जीव उपाधियों में फमा हो कि नहीं मालग स्वामी गाने यह रहता है तब तक यंध अवस्या कहात व भमि में किनभिप्रागसे निखा है और जब उन उपाधियोंसे नुक हो हो हम स्वामाशा की पुस्तक के मार भी जाता है अयात् छट जाना है तघास का करते हैं जिनके मोर भवस्था होती है। प्राचा
पगमे यार में बाबा नरेगा -- है ! कि स्वामी की उत्तन भी
चदाद भाप्य भानमा पुन २ समझ न हुई कि फर्भ उपाधिमे मुक्त ! सोना अधात छटने का नाम मुक्ति है
“जय मिश्या ज्ञान प्रान् अविद्या वा मुक्ति भी कोई पापी है शोक
न होजाती तब दीप जब
नष्ट हो जाते हैं उनके पीछे ( प्रवृत्ति) मों को अनुमार प्राप्त होती है परन्तु व नष्ट हो जाते हैं 3 मोचे ममझ भी ने लोगों को करने
अपात् अपमन्याय विषयाशक्ति वाम्ने यह लिखमारा कि भनिन्य भ
"आदिको बामना मर ही जानी है। मौका फन नित्य मुक्ति न की मक
उमक नाग हानेने (जस) अ यात फिर ती मामा जी..
जन्म नहीं होना उमझे न होने में मय बने क्षय का २६ घ शुद्ध निर्मन
। दुधोका अन्यन्त प्रभाव हो जाता है। होगया तभी तो .. :: मुक्त कढ़ाया।
दः । के अभाव र एक परमानन्द बह कर्म फोनमा बाझो रगया शिमोगामें अयति मा विन लिगः परका मजार मेंस बनाने का मात्माक माय प्रानन्द ही भगनकी माके न्याय में
कितनी बाबा माता का नाम मोक्ष है, जान के पक्षात् फिर नकर और ननदाद मायभा: पृष्ठ ११ न: पशिना बिना कार सभी ता- अयोर मय दापनि लद परमा. | वय
नम को पाताल कि | यह बात. कि अधिक कमाँका फन्न परमानन्द भाषा मे गधन प्रनहीं है घाण कर्मों को क्षए कर के जी-योजना और जिम में हानि