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मार्यमतलीला जाता है और इस मुक्त दशा में वह विद्यमान रहता है (प्रश्न ) कहां रह परम भानन्द भोगता है जो कदाचित् ता?? ( उत्तर ) ब्रल में ( प्रश्न) भी संसार में प्राप्त नहीं हो सकता है हम | | ब्रह्म कहां है और वह मुक्तजीव एक कारण उनको ऋषियोंके धाक्य लिखने ठिकाने रहता है वा स्वेच्छाचारी हो ही पहे परन्त जिस तिस प्रकार उन | कर सर्वत्र विचरता है? ( उत्तर ) जो को रट्ट करने और संसार बहानेका 3- ब्रह्म मर्वत्र पूर्ण है उसी में मुक्तजीव पदेश देनेकी भी कोशिश की गई। अव्याहत गति अधांत सम को कहीं
रुकावट नहीं विधान मानन्द पूर्वक आर्यमत लीला।
खतंत्र विचरता--
। सत्याप्रकाश पष्ठ २३८ यह बात नव प्रसिद्ध है कि एक “उस से उन को सब लोक और सब असत्य बात को संभालने के वास्ते - काम प्राप्त होते हैं अर्थात् जो जो मंभार मंट बोखने पड़ते हैं और फिर
कल्प करते हैं वह वह लोक और वह भी यह बात नहीं बनती है-पह ही
वह काम प्राप्त होता है और वे मुक्त जीव
म्यस्त शरीर छोड़कर संकल्प मय शरीर मुशकिल स्वामी दयानन्द को पेई |
मे प्रकाश परमेश्वर में विचरते हैं." है-स्वामी जी ने अपने अंगरेजी पढ़े
व मत्यार्थप्रकाश पष्ठ २४५ चेनों के राजी करने के वास्ते यह |
__ "मुक्ति तो यही है कि जहां इच्छा स्थापन तो कर दिया कि मुक्ति सेना
पन ता कर दिया कि मुक्ति हो वहां बिचरे" जीव लौट कर फिर संमार में माता मत्यार्थ प्रकाश पष्ठ २४९ है परन्तु इस अद्भुत मिद्धांन के स्थिर "अर्थात् जिम जिम प्रानंद की कारखने में उनको अनेक कट पटांग बातें ममा करता है उम २ मानन्द को प्राप्त बनानी पड़ी हैं
होता है यही मुक्ति कहाती हैस्वामी जी को यह तो लाचार मा- पाठक वंद! विचार कीजिये कि मना पहा कि नीवात्मा स्वच्छ और जीव को पच्छा में कमाने के वास्ते निर्मन्न होकर मुक्ति को प्राप्त होकर स्वामी जी ने मुक्ति को कैमा बालकों ब्रह्म में बाम करता है परन्तु मुक्ति का खेल बनाया है?-स्वामी जी को में भी जीव को रच्डा के वश में पं- इतनी मी समझ म हुई कि जहां इ. माने के वास्ते स्वामी जी मे अनेकदा वहां प्रानंद कहां? जब तक दात धमाई हैं । यथा:
जीव में रहा बनी हुई है तब तक | मन्यार्थप्रकाश पृष्ठ २३६
वह शुद्ध और मिमग्न ही कहां हुमा| "(प्रश्न) मुक्ति में जीव का मय हो-है:-बच्छा ही के तो दूर करनेके घाना है वा विद्यमान रहता है ? (उत्तर) | स्ते संयम सम्पास और योगाभ्यास