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प्रामसलीला ॥
हमरे ार्य भाई स्वामीजीके इभ न्तु जगत् की स्थूल बस्तु अन्य स्थल हेतु पर फूले नहीं समाते होंगे परन्तु बस्तुको उमही स्थानमें माने नहीं देती हम कहते हैं कि ऐमी घेतकी बातोंको है और भीड करती हैं स्वामीजी विहेत कहना ही लज्जाकी बात है नारेने संमारी स्थल वस्तों को देखकर कि स्वामीजी स्वयम् कहते है कि, जीव यह हेतु लिख मारी । वह बंचारे इन मुक्ति पाकर ब्रह्ममें रातार मौर ब्रल बातोंको क्या समझे? परम्त हम समसर्वव्यापक है और मुक्ति जीव सब जाते हैं कि निराकार खस्त भीड नहीं गह बिचरता फिरता रहमा -अफ-1 किया करती है बरस भी स्थल बस्त से सोस : इतनी बात मूर्ससे मूर्स भी सही हमा करतो 2-निराकार और मक सकता है कि ब्रह्माया जिसमें स्पलमें यह हो तो भेद है-बर को ब्रल मध्यापको और जो मुक्तजीवों स्वामीजी निराकार कहते हैं इस काका स्थान स्वामीजीके कपनानमार है। रमा तमके मर्यध्यापक होनेसे भीड नहीं उममें ही जगतकी ममामग्री स्थित है हो सकती.. जगत्को मर्वग्रस्तुओं मे तो भीष्ट हुई दम ही प्रकार आकाश निराकार है नहीं परन्तु मुक्ति जीवोंमे भीड़ भडका दम हेत ममे भी भीड न हुई परन्तु हो जायगा-ऐमी अद्भुत बुद्धि स्वागी मंमारको अन्य स्थल बस्तुओं से भीड़ हुई दयानन्द की ही हो सकती है और स्वामीजीको चाहिये था कि पहले यह किमकी होती।
विचार लते कि मुक्त जीव की बाबत बमके अतिरिक्त स्वामीनी परमेश्वर यह कदाजाता है कि वह ब्रह्म में बास को संबंख्यापक कहते हैं जब वह सर्व-करता है तो क्या वह स्थल शरीरके स्थानमें व्यापक होगया तो अन्य बस्तु माच बाम करता है? स्वामी जी स्व. उम ही स्थानमें केमे प्रा सकती है? यम ही कई स्थान पर लिखते हैं कि परम्तु स्वामीजी स्वयम् यह कहते हैं स्थून शरीर मुक्ति अवस्था में नहीं रकि जिम मबस्थानमें पर व्यापक है हता है तब तो पही कहना पड़ेगा कि उम ही सर्वस्थान में प्राकाशं भी सर्व मुक्ति में निराकार ब्रह्म में जीव निध्यापक है-ईश्वरने मई में प्यार कर | राकार अवस्था ही में बाम करता है भी ना करदी बरस जिम २ स्थान | तब भीड़ भड़क्का की बात कैसे उठ | में चरम सर्वही स्थानमें श्राकाश सकती है ? परन्तु स्वामी जी को त. भी ट्याप गया और स्वर और भाकाश अपना संसार मिटु करने के वास्ते वेतुके मईक पापक होने पर भी उस ही स्थान की हांकने से मतलब, चाहे वह बार में जगत् को सर्वबस्तुयें ट्याप गई पर- युक्ति पूर्वक हो वा न हो ।
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