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मार्यमतलीला॥
रखती देवता वाले जिसके कानमें प्ली- “हे मनुष्यो ! जो ऐसे हैं कि जिन हा रोग के आकार चिन्ह हों जिमके की खिंची हुई गर्दन या खिंचा हुश्रा सरोका और जिसके अच्छे प्रकार प्रा-खाना निगलमा वे अग्नि देवता वाले स हुए सुवर्ष के समान कान ऐसे जो जिनकी सुपेद भौहें हैं वे परिवी शादि
पर हैं वे सब त्वष्टा देवता वाले जो बसुओं के जो लाल रंगके हैं वे प्राण प्रा•काले पले वाले जिसके पांजरसी मोर | दि ग्यारह रुद्रोंके जो सुपेद रंगके और उपेद अंग और जिम की प्रसिद्ध जंघा
| अवरोध करने अर्थात् रोकने वाले हैं।
| सूर्य सम्बन्धी महीनोंके और जो ऐसे अर्थात् स्थल होनेसे अलग विदित हो |
हैं कि जिन का जलके समान रूप है वे ऐसे जो पश है वे सब पवन और वि
जीव मेघ देवता वाले अर्थात् मेघ के जली देवता वाले तथा जिसकी करो
| सदृश गुणों वाले जानने चाहिये । " दी हुई चाल जिसकी थोष्ठी चाल और |
ऋचा जिम को बड़ी चाल ऐसे जो पशु हैं घे| "हे मनष्यो! तुमको जो ऊंचा और सब उषा : वप्ता बाले होते हैं यह जा. श्रेष्ठ टेटे अंगों वाले नाटा पशु हैं वे वि. मना चाहिये ।” ऋचा ५
जली और पवन देवता वाले जो . " हे मनुष्पा! तुमको जो सुन्दर रु.
|चा जिसका दूसरे पदार्थको काटती हांपवान् और शिल्प कार्यों की मिद्धि क
टती हुई भजात्रों के समान बल और रने वाली विश्वे देव देवता वाले वागी
|जिसकी सूक्ष्म की हुई पीठ ऐसे जो पश के लिये नीचे से ऊपर को चढ़ने योग्य हैं वे वाय और सर्य देवता वाले जिजो तीम प्रहारजी भहें पयिवीके लिये नका सुग्गों के समान रूप और पेग वाले विशेष कर न जानी हुई भेड़ आदिकबरे भी हैं वे अग्नि और पवन देवता धारण करने के लिये एकमे रूप वाली | वाले तथा जो कालेरंग के हैं वे पुष्टि तथा दिव्य गण बाले विद्वानों की खि- निमित्तिक मेघ देवना वाले जानने चायोंके लिये अतीव छोटी २ घोड़ी अ-हिये।" ऋचा वस्था बाली बछिया जाननी चाहिये।, “हे मनुष्यो ! सुमको ये पूर्वोक्त द्वि
(मोट ) हम नहीं समझते कि वि.रूप पश अर्थात् जिनके दो दो रूप हैं द्वानोंकी सियां घोड़ी अवस्था वाली ये वाय और विजनी के संगी जो टेढ़े कोटी २ बहियाओंसे क्या कारज सिद्ध अंगों वाले व नाटे और बैल हैं वे सोम कर सकती हैं और यदि त्रियोंका कोई और अग्नि देवता वाले तथा अग्नि कार्यम से सिद्ध होता है सो विशेष | और वायु देवता वाले जो वन्ध्या गौ कर विद्यामकीही नियोंके वास्ते ही हैं वे प्राण और उदाम देवता वाली क्यों यह छोटी २ पछिया वर्णन की और जो कहीं से प्राप्त हों वे मित्र के गई हैं। ऋचा ६ 'प्रिय व्यवहार में जानने चाहिये ।"