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आर्यमतलीला। ऋग्वंद बठा मण्डल सूक्त १६ ऋ२४४ हे-इन्द्र जो ये मानन्द कारक गोले "हे बिद्वान् ! आप हम लोगोंको उत्तम सोम आप के रहने के स्थान को प्राप्त प्रकार सोम रसके पानके लिये सब पोर होते हैं उनका श्राप सेवन करो। 1 से प्राप्त होमो
जो श्राप के "स्नेह करने वाले होवें किसीके राजा होनेपर सोम | उनके समीप से भोग करने योग्य - रस बांटा जाना था। यथा:
त्तम प्रकार बनाया सोम को उत्पनहो 'अग्वेद छठा मगदुल सूक्त २९ ऋ४
सुख जिम में उस पेट में आप धरो। __ "हे विद्वानो में अग्रणी जनो! जिन |
ऋग्वेद पंचम मंहन सूक्त ७२ ऋ०१ राजाके होनेपर पाक पकाया जाता है।
। हे अध्यापक और उपदेशक जनो.. भंजे हुए प्रश्न हैं चारों ओरसे अत्यन्त | श्राप सोम रसका पान करने के लिये मिला हुमा उत्पन्न सोम रस होता है... | उसम गृह वा आमन में बेठिये। वह श्राप हम लोगों के राजा हूजिये-" | वेदों में मोमरम पीनेके वास्ते मन
सोमको पेट भर कर पीने की प्रेरणा व्यों को बुलाने के बहुन गीत हैं जिस की जाती थी जिस प्रकार भंगड़ दो प्रकार भांग पीने वाले भंग घोटकर दो लोटे पी जाते हैं। " पथा:- बलाया करते हैं । यथाः
ग्वेद दूसरा मयखुरल सूक्त १४ ऋ० ११ / ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ८ ० २ । सम ऐश्वयवान को यव अन्न से जैसे सोमलता के पश्चात् जैसे हरिश दोमटका को वा डिहरा को येसे ( मोम |इते हैं वैसे और जैसे दो मृग दौड़ते हैं। भिः) मोमादि औषधियों से पूरी प-वेने भाइये। रिपूर्ण करो
ऋग्वेद अठा मंडल सूक्त ६० वर ऋग्वेद सप्तम मण्डल सूक्त २२ ऋ० १ हे नायक'मामपान के लिये इस |
पोहे के समान मोम को पीनो- अध्ई प्रकार संस्कार किये हुए जिमसे | ऋग्वेद चौया मंडल सफा ४४ ऋ४
| उत्पन्न करते हैं उस के समीप प्राप्त हे मत्याचरख बाले अध्यापक और
होमो। सपदेशक जनो माप दोनों हम यन्त्रको
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १०० ऋ० ७-८ प्राप्त होनी और मधुर प्रादि गुणों से युक्त सोमरस का पान करो।
__ हे स्वामी और सेवको सुख की वर्षा ऋग्वेद तीसरा मंडन सूक्त ४००२-४५ / *
करते हुवे प्राओ-मोम को पिमओ। हेन्द्र प्रत्यन्त तृप्ति करने और या शावेद सप्तम मंडल सूक्त २४३ के सिद्ध करने वाले उत्तम संस्कारों से सोम को पीने के लिये हमारे इस उत्पन सोमकी कामना और पान करो वर्तमान उत्तम स्थान वा अवकाश को उससे बेल के सदृश बलिष्ठ होओ। पामो ।