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fe रमको तुम लोग मत खींचो। " ऋग्वेद वठा मंडल सूक्त ४७ ऋचा ३
हे मनुष्यो ! जैसे यह पान किया। गया सोमलता का रस मेरी वाणी को कामना करती हुई बुद्धि को बढ़ाता है। जिससे यह जन कामनाको प्राप्त होता है जिससे यह छः प्रकारको भमियोंको ध्यान करने वाला बुद्धिमान् जन जैसे निर्मास करता है और जिनसे दूर वा समीप में कभी भी संमारको रचता है यह बैद्यकशास्त्र की रीतिसे बनाने यो ग्य है ! "
नके समान बा सेवन करने वालोंके समान बैठते स्थिर होते इनके भुत्र एकन्धों में जैसे प्रत्येक कामका प्रारम्भ क रने वाली स्त्री संलग्न हो वैसे संग्र होता हूं जिन्होंने हाथोंमें भोजन और क्रिया भी धारणा किई है उनके साथ सब क्रियाओं को अच्छे प्रकार धारण, करता हूं ।
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प्रार्थनीला ॥
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ४८ ऋचा १२ “हे प्रभात के तुल्य स्त्री मैं सोम पीने के लिये ऊपर से अखिल दिव्य गुण युक्त पदार्थों और किस तुझको प्राप्त होता हूं उन्हीं को तू भी अच्छे प्रकार प्राप्त हो-"
सोम इकट्ठे होकर पिया जाता था जिस प्रकार भंग इकट्ठे होकर पीते हैं । यथा:ऋवंद प्रथम मंडल सूक्त ४५ ऋचा
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मैं जिस इस हृदयों में पिये हुए ( सोमम् ) ओषधियोंके रसको उपदेश पूर्वक कहता हूं उसको बहुत कामना | सोम रमके पीनेके लिये प्रातःकाल दु
हे - विद्वानो ! मैं सज्जन... प्राज
सोमके नशे में जो कोई अ पराध हो जाये उसकी क्षमा इस प्रकार मांगी गई हैऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ११६ ऋषा ५
वाला पुरुष ही सुख संयुक्त करे अर्थात् अपने सुख में उनका संयोग करे जिस अपराधको हम लोग करें उसको शीघ्र सब भोर से समीप से सभी जन छोड़ें र्थात् क्षमा करें-.
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रुषार्थ को प्राप्त होने वाले विद्वानों... और उत्तम शासनको प्राप्त कर । " ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ४१ ऋचा १०
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हे बहुत विद्वानों में बसने वाले... जहां विद्वानोंकी पियारी सभामें आप लोगोंको अतिशय श्रद्धा कर बुलाते हैं वहां तुम लोग पीछे मनातन सुख को प्राप्त होखो और निश्चय से सोम को पीओो । "
सोम पीकर कामदेव उत्पन्न होता था और भोजन की इच्छा होती थी जिस प्रकार भंगसे होती है । यथा-ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६६ ऋ० ३ 'मैं जो पवनोंके समान विद्वान् जिनसे सूर्य किरण आदि पदार्थ तृप्त होते
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ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त ३० ऋचा ३ सब ओर से उद्यम कर मौर मेल और वे कूट पीट निकाले हुए सोमादि । कर प्राप्तिले प्राप बबन्तादि ऋतुनों के औषधि रस हृदयों में पिये हुए हों उ- साथ सोमको पोलो "