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आर्यनतलीला ॥
बेलाके प्रबोधमें सूर्य मंडलकी किरणों | आर्यमत लीला॥ के साथ औषधियोंका रस सब ओरसे
(१२) सिद्ध किया गया है उसको तुम प्राप्त | हो तुम्हारे लिये ये गोले वा टपकते |
घेदों में सोम पीने वाले की बड़ी
| तारीफ (प्रशंसा) की गई है यहां तक हुए ( सोमासः) दिव्य औषधियोंके।
कि जो चोरी करके पीवे उसकी बहुत रस और जो पदार्थ दहीके साथ भोजन किये जाते उनके समान दही से |
ही प्रशंमा है भंगह लोग भी भंग पीने
वाले को इम ही प्रकार प्रशंसा किया मिले हुए भोजन सिद्ध किये गये हैं उन्हें।
करते हैं हम इस विषय में स्वामी जी भी प्राप्त होश्रो।,
के वेदभाष्य के हिन्दी अर्थों से कह ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ५२ प्राचा
माक्य नीचे लिखते हैं। हे (शूर) दुष्ट पुरुषके नाश कर्ता उस
ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ४८ ०४ आपके लिये दधि आदि से युक्त भोजन
जो यह भक्षण करने वाली सेनाओं करनेके पदार्थ विशेष और भूजे अन्न | में साम की चोरी करके पीव"वह रातथा पुत्राको देवं उसको समूह के सहित | ज्य करने के योग्य होवेबर्तमान प्राप उत्तम मनुष्यों के साथ भ. | ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त ३१ ऋचा १ क्षमा कीजिये और सोमकोपान कीजिये।, हे मित्रो तुम्हारे मनुष्य वा हरण. धतूरेके बीज भीभंगमें मि-शील घोड़े जिसके विद्यमान हैं उस
| सोम पीने वाले परम ऐश्वर्यवान्के लिये लाये जाते हैं उसका बर्णम
| प्रानंद से तुम अच्छे प्रकार गाओ। इस प्रकार है:
ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त ४६ ऋ०१ ऋग्वंद प्रथम मंहरू सूक्त १८७ ऋचा हे वायु के सदृश बलयुक्त जिस से
हे (मोम) यधादि औषधि रस व्या- | श्राप श्रेष्ठ क्रियाओंमें पूर्व वर्तमान जनों पी ईश्वर गौके रससे बनाये वा यवादि का पालन करने वाले हो इससे मधुर औषधियोंके संयोगसे बनाये हुए उस रसों के बीच में उत्तम उत्पन्न कियेगये अबके जिस सेवनीय अंशको हम लोग | रमको पाम कीजिये।। सेबते हैं उमसे हे ( बातापे ) पवम के | ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त र ऋ०५ समान सब पदार्थों में व्यापक परमेश्वर जो सम्पूर्ण विद्वान् जम मोम ओषउत्तम वृद्धि करने वाले हूजिये।,, | |घि पान करने योग्य रस को अनुकूल ऋग्वंद तीसरा मंडल सूक्त ३६ ऋचार देते हैं वे बुद्धिसे विशेष ज्ञानी होते हैं।।
"जिस पुरुषके दोनों ओरके उदर | ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ४० ऋ०४ के अवयव (सोमधानाः ) मोमरूप | । जो सोमरसका पीने धाला दुष्ट शत्रुऔषधियोंके बीजोंसे युक्त गम्भीर ज- ओंका माश करने वाला हो उसही को लाशयोंके सदृश बर्तमान हैं।,, अधिष्ठाता करो।