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प्रार्बनरलीला ॥
इस कारण उन का इस संसार में सेवन | समझा है और इस कारण कि सोन
करके पराक्रम वाले होते हुए आप दोनों (मादयेघाम) ग्रामन्दित होवें ।
ऋग्वेद सप्तन मंडल सूक्त २६ ऋ० २ सोमरस "जीवात्मा को इर्षित करता है ऋग्वेद का मंडल सूक्त ४० ऋचा १ हे राजन् ! जो आप के लिये (मदाय) हर्ष के अर्थ उत्पन्न किया गया सोमलता का रस है उसको पीजिये । ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त ४४ ऋचा ३ (मदः) ज्ञानन्द देने वाला वह (सोम) श्रीषधियों का रस पत्र किया गया आप का है उसकी भाप वृद्धि कीजिये ऋग्वेद चौघा मंडल सूक्त ४९ ऋचा २ हे राजा और उपदेशक विद्वान् जनो ! | आप दोनों के मुख में ( मदाय ) - नन्द के लिये पान करने को प्रति उसम (सोमः) घड़ी प्रौषधिका रस यह सब प्रकार से सींचा जाता है इस से आप समर्थ होवें । ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ४३ ऋचा ५ हे अत्यंत ऐश्वर्य से युक्त विद्वन् जिन से आप के बड़े प्रीति से सेवन किये गये प्रज्ञान तथा चातुर्य्य बल और (मदाय) आनंद के लिये (सोमः ) बड़ी जोषधियों का रस वा ऐश्वर्य उत्पन किया जाय । हम ऐसा सुनते हैं कि फिरंगी वि- | द्वान् जिन्हों ने वेदों का अर्थ किया है और वेदों को पढ़ा है उन्होंने वेदों में | यह कथन देखकर कि सोम मदके बास्ते पिया जाता था सोम को मदिरा
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १७५० २ हे सभापति छाप का जो सुख क रने वाला स्वीकार करने योग्य वीर्य कारी जिसमें बहुत बहन शीलता बिद्यमान जो अच्छे प्रकार रोगों का विभाग करने वाला जिससे मनुष्यों की सेना को सहते हैं और जो मनुष्यस्वभाव से विलक्षण (मदः) प्रोषधियों का रस है वह इन लोगों को प्राप्त हो । ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ९६६ ० १ जो स्तम्भन देने वाले अर्थात् रोक देने वाले जिनका धन विनाशको नहीं प्राप्त हुवा पूर्ण शत्रुओं के मारने हारे मच्छी प्रशंसाको प्राप्त जन संग्रामों में शूरता आदि गुण युक्त युद्ध करने वाले के प्रथम पुरुषार्थों वलों को जानते हैं ( मदिरस्य) अानन्द दायक रस ( पीतये ) पीने को सत्कार करने यो ग्य विद्वान का अच्छा सत्कार करते हैं। ऋग्वेद कठा मंडल सूक्त २० चा ६
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रस की उत्पत्ति वेदों में वनस्पति से लिखी है उन्होंने यह नतीजा निकाला है कि ताड़ी आदि किसी कि शेष वृक्ष का यह मद है जिस से मा पैदा होता है उन का ऐसा समझना कुछ अचम्भे की भी बात नहीं है क्योंकि वेदों में मदिरा का भी वर्णन मिलता है इसकी सिद्धि के अर्थ हम कुछ वाक्य स्वामी दयानन्द जी के वेद भाग्य से लिखते हैं-