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प्रार्यमतलीमा ।
" हे वीर...कवचधारी होकर अजीके अर्थों के अनसार दिखा चुके हैं। नवि शरीरसे तुम शत्रुओं को जीतो अब हम सोमका बर्थन करते हैं जिसके सो कवचका महत्व तुम्हें पाले , मधन में भी अनुमान एक चौथाई वेद
"हे बागों को व्याप्त होने वालों में मरा हुधा है! मोम एक मद करने उत्तम मैं तेरे शरीरस्थ जीवन हेतु अं- वाली वस्तु थी जिसको उम समयके गोंको कवचसे ढांपता हूं।" लोग इकट्ठे होकर पीते थे । वेदों में ऋग्वेद तोमरा मंडल सूक्त ३० ऋ०१६ सोम पीने की बहुत अधिक प्रेरणाकी
" इन शत्र ओंमें अतिशय तपते हुए गई है मोम पीने के बास्ते मित्रों को बजको फेंकके इनको उत्तम प्रकार वि- बुलाने के बहुन गीत गाये गये हैं प नाश कीजिये।,
रन्तु यह नहीं बताया है कि सोम
श्या बस्तु है? स्वामी दयानन्द मरऋग्वेद तीमरा मंडल सूक्त ५३ ऋ२४ |
स्वती जीने वेदोंके अर्थ करने में मोम " संग्रामम धनुषका तात क शब्दका का अर्थ औषधिका रम वा बड़ी प्रोनित्य सब प्रकार प्राप्त करते हैं उसकी
| षधिका रम बा ओषधि समूह वा सो और उन को आप अपने प्रात्माके स-मलता वा सोमवाली किया है। परदृश रक्षा करो।,
स्तु यह आपने भी नहीं बताया कि ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ३३ ऋचा | जिस सोम पीने की प्रेरणामें एक चौ.
" संग्राममें त्वचाकी आच्छादन क-चाई वेद भरा हुआ है वह सोम क्या रने और रक्षा करने वाले कवच को औषधि है। वदोंमें सिवाय इस मोम देते हुए । ,
के और किसी औषधिका बर्षम नहीं ऋ. पंचम मंडल सूक्त ४२ ऋचा १९ है और न किसी रोगका कथन है । " जो सुन्दर बालोंसे युक्त उत्तम घ. इस कारण स्वामी जीको बताना चानुष वाला,
हिये था कि यह क्या औषधि है और आर्यमत लीला। किस रोग के वास्ते है।
| केवल औषधि कह देनेसे कह काम प्यारे मार्य भायो ! प्राधा वेदन- नहीं चलता है क्योंकि जितनी खाने हाई करने' शत्रओं को मारने, मनष्यों की वस्तु हैं वह सब ही औषधि हैं
अन भी औषधि है और दूध भी, शका खून करने और लुटमार श्रादिक . की प्रेरणा और उत्तेजना वा राजासेला
राव भी औषधि है और संखिया भी:
मालम होता है कि स्वामी जी रक्षा की प्रार्थमा में भरा हुधा है।को यह सिद्ध करना था कि संसारभर जिस का नमूना हम भली भांति पि- में जो विद्या चाहे वह किसी विष. बले लेख में खामी दयानन्द सरस्वतीय की हो वह सब वेदोंमें है और वेदों