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प्रार्यमतलीला |
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नहीं बताया है--अर्थात् उन्होंने मनु- हो सकती है । कृपाकर आप इस मि ष्योंको मौका दिया है कि वह उनकी द्वान्त को स्थापित करने में पहले स्वामी सर्वज्ञताकी सर्व प्रकार परीक्षा कर लेवें । जीके अर्थ किये हुये वेदों का पढ़ तो और तब उनके उपदेश पर श्रद्धा लावें | लहें और उन की ज़रा जांच तो कर अन्य भन स्थापन करने वालोंकी तलवें कि ऐसे गीत ईश्वर वाक्य हो भी रहमे उन्होंने यह नहीं कहा कि में जो मकते हैं या नहीं--प्यारे भाइयां ! जब कुछ कहता हूं वह ईश्वर के बाक्य हैं मैं आप जरा भी वेदों को देखेंगे तो आप स्वयम् कुछ नहीं जानता हूं इन कारण को मालन हो जावेगा कि बंदों में साधारण मांसारिक मनुष्यों के गीतों के सिवाय और कुछ भी नहीं है वेदों में धार्मिक और सिद्धान्तका कथन तो क्या मिलेगा इममें को माधारणा ऐमी भी शिक्षा नहीं मिलती है जैमी मनुस्मृति आदिक पुस्तक में मिलती है देखिय क्या निम्न लिखित वाक्य ईश्वर के हो सकते हैं ? ॥
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fararक्योंके मिवाय मेरी अन्य बातोंकी परीक्षा मत करो क्योंकि मैं तुम्हारे ही जैना भाधारण मनुष्य हूं-भाइयो! जैनधर्म में जो तस्वार्थ बर्णन किया गया है वह इन ही कारण बस्तु स्वभाबके अनुकूल है कि वहस वंश का कहा हुआ है--प्रात्मीक ज्ञान. फर्मों के ज्ञान, कर्मों के भेद उनकी उ त्यत्ति विनाश और फल देनेकी फिलासफी अर्थात सिद्धान्त हम ही हेतु जैन धर्ममें भारी विस्तार के माथ मि. लता है कि यह ज्ञान मर्वझकी ही हो सकता है न कि गुप्त शक्तिके ज्ञान पर आश्रय करने वाले फी-
ऋग्वेद
मातयां सूक्त २४ ऋषा २ • हे देनेवाले जी नाना प्रकारकी विद्या युक्तवाणी और सुन्दर
परमेश्वर्य देनेवाले पुरुषको निरन्तर बुलहान जिसकी ऐनी यह प्रिया स्त्री लाती है उनकी धारण करती है जि हे प्यारे आार्य भाइयो ! यह भयंकर | मे प्रयत् विद्या और पुरुषार्थसे बढ़मने तेरा मन ग्रहण किया तथा जो दो और अन्धकार फैजाने वाला मिद्धान्त फि, कोई ज्ञानवान गुप्त शक्ति अपना | औषधियोंका रम है [ मोमकी बावत् ता वह उत्पन्न किया हुआ ( सोम ) ज्ञान किती मनुष्यके द्वारा प्रकाश कर सकती है, यदि आपको मानना भी था तो किमी कार्यकारी वासके ऊपर माना होता परन्तु वेदों को ईश्वर के वा
मि करने वाले ऐसे सिद्धान्तका स्थापित करना तो ईश्वरको निन्दा करना है क्योंकि वेद ती गीतका सग्रह हैं वह शिक्षाकी पुस्तक कदाचित् नहीं
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हम आगे सिद्ध करेंगे कि यह भंग श्रादिक नशों की कोई बस्तु होती थी जि मके पीनेका उपदेश वेदों में बहुत मि लता है ] और जहां सब ओरसे सींचे हुये दाख वा शहत बादि पदार्थ हैं उन्हें मेबो--"
ऋग्वेद दूसरा मंडल मूक्त ३२ ऋमा ६-८ हे मोटी २ जंघाओं वाली ओ अ
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