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धार्यमतलीला ॥
(३७) महीं । इन बातों के सिद्ध करने के उत्तम भाषा बना सकता है यदि बारते तो आप को किमी भी हेतु की | नहीं बना सकता है तो ऋषियोंने क्यों भावश्यकता नहीं होगी क्योंकि आप | संस्कृत बनाई और क्यों माप लोग स्वयम् संस्कृत भाषा की प्रशंमा किया | संस्कृत भाषा की प्रशंसा करते हैं? ब. करते हैं और संस्कृत शब्द काही रण उन ऋषियों को मूर्ख और ईश्वर वह अर्थ होता है कि वह संस्कारको विरोधी कहना चाहिये जिन्होंने ई. हुई है अर्थात् शुद्ध की हुई है। प. |श्वर की भाषा को नापमन्द करके और रन्तु पारे भाइयो श्राप यह भी जा-मका संस्कार करके अर्थात् उसमें कुछ | नते हैं कि वेदोंकी भाषा संस्कृत भाषा| अलट पलट करके संस्कृत भाषा बनाई। नहीं है बरण संस्कृत से बहुत मिलती | परन्तु ऐमा न कह कर यह ही कहना जलती है और यह भी आप मार्नेगे पड़ेगा कि वेद ईश्वर का वाक्य नहीं है कि पदोंकी भाषा पहली है और सं- और वेदों की भाषा ईश्वर की भाषा स्कृत भाषा उसके पश्चात् बनी है 4 महीं है। हम यह नहीं कहते हैं कि र्थात् वेदोंकी भाषा कोही संस्कार क. गंवारों और मुखों को समझानेके वास्ते रने अर्थात् शुद्ध करने से संस्कृत नाम | विद्वान् लोग मन मूखों की भाषा में पहा है। अर्थात् संस्कृतमे पहले भाषा उपदेश नहीं कर सकते हैं वरण हमतो गंवारथी जिमको शुद्ध करके ऋषियों इस बात पर जोर देते हैं कि मूखों और ने मनोहर और मुन्दर संस्कृत भाषा गंवारों को उन की ही गंवार बोली बनाई है। इमसे स्पष्ट सिद्ध होता है में उपदेश देना चाहिये जिससे वह उकि धेदों की भाषा गंधार है और वेद पदेश को अच्छे प्रकार समझ सके की भाषा और संस्कृत भाषा में इतना | परन्तु जिस समय स्वामी जी के कही अन्तर है जितना गांवके मनष्यों बनानुसार ईश्वर ने वेदप्रकाश किकी और किमी बड़े शहर की भाषा | ए उस समय तो कोई भापा प्र. में अंतर होता है। यदि वेदोंकी भाषा
चलित नहीं थी जिस में अपना गंवार भाषा न होती तो वह ऋषि |
जान प्रकाश करने के वास्ते ईश्वर मजन जिनको शुद्ध ममोहर संस्कृत भाषा
जबर होता बरण उस समय तो मष्टि बमाने की आवश्यक्ता हुई वह संस्कृत
की प्रादि थी और प्रार्या भाइयों के भाषा सुन्दर और मनोहर होती तो
कथन के अनसार उम समय के मनुष्य वेदों की ही भाषाका प्रचार करते प-कोई भाषा नहीं बना सकते थे इस रन्तु स्वामी जीके कथनानुमार वेदकी | कारण उन को जो भाषा सिखाई वह भाषा को तो ईश्वर की भाषा कहना ईश्वने दी सिखाई। वह भाषा जो इस चाहिये तो क्या मनण ईश्वर से भी प्रकार सष्टिको आदिमें सिखाई यह घेदों