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मार्यमतलीला॥ ऋग्वद मष्ठा सात सूक्त १ ऋ०६ ।हुई और ऐश्वर्य के लिये जगाती हुई " जैसे यवावस्या को प्राप्त कन्या- प्रकाशसे अद्भुत स्वरूप वाली किंचित् रात्रि दिन अच्छे बन मुक्त जिम पति हाल प्राभा युक्त कान्तियों को सब को समीपसे प्राप्त होती है. वैसे - प्रकार प्राप्त कराती हुई बड़ी अत्यन्त ग्नि विद्याको प्राप्त हो तुम लोग आ- प्रकाशमान प्रातःकाल को चला जाती नन्दित होओ--,
| और भाती है वैसे धाप इनिये-. ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५६ ऋ०५ | ऋग्वंद प्रथम मंदुल सूक्त ८२९६
" हे मभापति शत्रुओं को मार अ- "हे उत्तम शस्त्र युक्त सेनाध्यक्ष जैसे मैं पने राज्यको धारण कर अपनी स्त्रीको तेरे अनादि से युक्त नौकारथ में सूर्य श्रानन्द दियाकर । "
की फिरग के समान प्रकाश मान घो. ऋग्वेद प्रथम मंडस्म सूक्त ८२ ऋ०५ डों को जोड़ता हूं जिम में बटके तू भाप के जो सुशिक्षित घोड़े हैं उन हायों में घोड़ों की रस्मी को धारण को रथमें युक्त कर जिम तेरे रथके एक करता है उम रथ मे और शत्रों की घोडा दाहिने और बाई ओर हो उम शक्तियों को रोकने हारा अपनी स्त्री रथ पर बैट शत्रोंको जीतके अतिप्रिय के साथ अच्छप्रकार प्रानंद को प्राप्त हो.. स्त्रीको माघ बेटा आप प्रसन्न और उम ऋग्वेद दूमरा महा सूक्त ३ ऋ०५ । को प्रमन्न करताहुना अन्नादि सामग्री के "हे पुरुषो पाप अनादि को वा पथिसमीपस्थ होके तू दोनों शत्रओं को बी के माय व्तमान द्वारों के समान जीतने के अर्थ जाया करो। शोभावती हुई श्रीर ग्रहण की हुई ऋग्वेद चीषामंडन सूक्त ३ ऋ०२ जिनकी सुन्दर पाल पर रहित मन"हे राजन् हम लोग आप के जिम प्यों में अवमा को प्राप्त उत्तम बीरासे गृह को बनाबैं सो यह गृह स्वामी के युक्त यश और अपने रुपको पवित्र लिये कामना करती हुई सुन्दर वस्त्रोंसे करती हुई ममस्त गुगों में व्याप्ति र. शोभित मन की प्यारी स्त्री के मद्रश खने वाली देदीप्यमान अपांत् चमकइस बर्तमान काल में हुाा म ब प्रकार ती दमकती हुई स्त्रियों को विशेषता व्याप्त उत्तम गण जिम में ऐसा हो उस से श्राश्रय करा और उनके माप शास्त्र में प्राप निवास करी
या सुखों को विशेषता से कहो सुनो,, ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त १४ ऋ०३, ऋग्वेद दूसरा मंडरल सूक २० ऋ० १ हे विद्या यक्त और उत्तम गुगा वाली हे सर्य के तुल्य विद्याके प्रकाशक ज्ञा. स्त्री त जैसे उत्तम प्रकार जोसते हैं घो- नया नियमों को धारण किये गए हों को जिम में उस बाहन के सदृग विद्वान् लोगो तुम मेरे दूर वा समीप अपने मिाशों से प्राणियों को जनाती | में सत्य को प्रवृत्त करो एकांतमें जनने