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आर्यमतलीला ॥
(16) वाक्य बताया जाता है और ईश्वर ने अर्थात् तिब्बत देश में प्रथम मनुष्यों वेदों में चिल्ला २ कर और बार बार का उत्पन्न होनाही सर्वषा प्रसंगात बरण हजारों बार यह कहा है कि होता है और यह ही मालम होता है तुम्हारी जीत हो, तुम शत्रों को कि
| कि मर्व ही देशों में मनुष्य रहते चले मारो और दस्यों का नाश करो प-आये हैं।
| दस्यु और राक्षमोंको विध्वंम करने रंतु ईश्वर का एक भी वाक्य सच्चा न
के विषय में जो गोन वेदों में है उन हना और प्रायों को ही भागना पड़ा-1 में से कछ बाक्य स्वामी जी के प्रों स्वामी दयानन्दजी ने सत्यार्थप्रकाश
के अनुसार नीचे लिखे जाते हैं। में यह भी लिखा है कि मार्यावर्तदेश
ऋग्वेद चौथा महामसक्त १६ ऋचा १२-१३ से दक्षिणा देश में रहने वाले मनुष्यों
| सहस्रों (दस्यन्) दुष्ट चोरों को शीघ्र का नाम राक्षम है, परन्तु वेदों में रा.
नाश कीजिये ममीप में इंदन कीजिकमों से भी युद्ध करने और उनका स- ये सहस्रों कृष्ण वर्ण वाले सैन्य जनों त्यानाश करने का वर्णन है। इससे | का विस्तार करो और दुष्ट पुरुषों का स्पष्ट बिदित होता है कि वेदों के नाश करो। गीतों के बनाने के ममय आर्यावर्त ऋग्वंद चौथा मंडन सूक्त २८ ऋचा ४ देश से दक्षिणा में रहने वाले मनुष्यों | (दस्यन) दुष्टों को सबसे पीडा युक्तकरें से भी लड़ाई होती थी। तिब्बत प्रा. ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त ३० सवा १५ यावर्त देश के उत्तर में है और राक्ष- पांचसो वा महस्री दृष्टों का नाश करो स आर्यवर्त देश से दक्षिण में है इस ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त ३८ चा १ हेत राक्षमों से लड़ाई हो नहीं मक्ती राजन आप और सेनापति हरते जब तक लाने वाले भारावर्त में न हैं दस्य जिससे ऐसे होते हुए । बसते हों। इस से स्वामी जी का ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त०४चा ६ यह कथन सवधाही झठ होता हे बलवान के पुत्र-बध से ( दस्यु )। है कि नियत देश में सष्टि साहस कर्मकारी चौर का अत्यंत की आदि में वेदों का प्रकाश
| नाश करो।
ग्वेद पंचम मंडल सूक्त २९ ऋचा १० किया गया और तिब्बत से
मुख रहित ( दस्यून् ) दुष्ट चोरों का आने से पहले किसी देश में आनस पहल कसा दश मबध से नाश करिये। कोई मनुष्य नहीं रहता था अग्वेद पंचम मंडल सूक्त 97 ०३ क्योंकि यदि कोई मनुष्य नहीं रहता जिमसे हम लोग शरीरोंसे (दस्पन्के) था तो भार्यावर्त देश के दक्षिण में इष्ट चौरों का नाश करें। राक्षस लोग कहां से उत्पन्न हो गये? | ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त २३ ऋचा २