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श्रार्यमतलोला ॥
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ऋगवेद प्रथम मंडल सूक्त ५४ वा ६ आप दुष्ठों के हह नगरों को नष्ट करते हो ।"
जमी हुई थी और उन शत्रुओं को और | प्राप्त होने को समर्थ होते हैं।" उनके नगरोंको सर्वथा नाश करना ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५३ ०७-८ चाहते थे और बहुतसे ग्रामों वाले मि | प्राप इस शत्रुनों के नगर को नष्ट करते. लकर इनके शत्रु हो गये थे । यथाः- हो दुष्ट मनुष्यों के सकड़े नगरों को ऋगवेद प्रथम मंडल सूक्त १७४ ० ८ भेदन करते हो । "हे सूर्य्य के समान प्रतापवान राजन् | आप युद्ध को निवृत्तिके लिये हिंसक शत्रुजनोंको सहते हो । आप जैसे मा चीन शत्रुओं की नगरियों की नि भिन्न करते हुए वैसे भिन्न अलग २शariat दुष्ट नगरियको नमाते ढहा ते हो उससे राक्षस पन संचारते हुये शत्रुका नाश होता है यह जो आप के म शूरपने काम हैं उनको नवोन प्रजा जन प्राप्त होवें ।” ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त१८ ऋ० १३ " जैसे परम ऐश्वर्य्यवान् राजा बल से हम शत्रयों के सातों पुरों को विशेष ता से छिन्न भिन्न करता ।,,
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ९३०००० "आप शत्रुओं की नवे नगरियों को बिदारते नष्ट भ्रष्ट करते ।,,
ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ३४ ऋ० ९ "हे राजपुरुष शत्रुओं के नगरों को तोड़ने वाले आप शत्रुओं का उल्लं पन करो ।
ऋग्वेद इठा मंडल सूक्त ३१ ऋषा ४ "हे राजन् प्राप शत्रुके सैकड़ों नगरों का नाश करते हो ।
ऋगवेद चौघा मंडल सूक्त ३० ऋ० ३० "जो तेजस्वी सूर्य के सदृश प्रकाशके सेत्रने वाले और देने वाले के लिये मेंघों के समूहों के सदृश पाषाणों से बने हुए नगरों के सैकड़े को काटे वही विजयी होने के योग्य होवै ।"
ऋग्वेद वठा मंडल सूक्त १३ कुत्रा २ शत्रुओं को मारता हुआ तथा धनोंको प्राप्त होता हुआ शत्रुओं के नगरोंको निरन्तर विदीर्ण करता है वह ही से नापति होने योग्य है ।"
ऋग्वेद चौथा मंडल सूक्त ३२ ऋ० १० "हे राजन् कामना करते हुए आप श त्रुनों की जो सेविकाओं (दासियों') के सदृश सब प्रकार रोग युक्त नगरियों को सब ओर से प्राप्त हो कर जीतते हों उन आपके बल पराक्रम से युक्त कम का हम लोग उपदेश करें ।”
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ४१ ऋषा ३ "जो राजा लोग इन शत्रुओंके (दुर्ग) दुःखसे जाने योग्य प्रकोटों और नगर को छिन्न भिन्न करते और शत्रुओोंको करदेते हैं वे चक्रवर्ती राज्य को
ऋग्वेद सप्तम मडल सूक्त १८ ऋ०१४ "जिन्हों ने परमैश्वर्य युक्त राजा के सम स्त ही पराक्रम उत्पन्न किये वे अपने
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