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| करिये।,
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भार्यमतलीला ॥ जिसप्रकार सूर्य मेघकी मारताहै। निश्चयसे इन शत्रुनोंको तोड़ कोहर इस तरह शोंको मारकर ऐसी नींद / लट पुलट कर अपनी कीर्ति से दिशामुलानो कि वह फिर न जागे।
ओं को अनेक प्रकार ज्यात करो। ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ३० वा
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १९७ २०२१ जसे सूर्य मेषको पीमता है वैसे प्रा- "डाक दुष्ट प्राशीको अग्नि से जलाते प शत्रों का नाश करो।
हुये अत्यंत बड़े राज्यको करो।" ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त ४५ ० २ | ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १३३ १०२
सर्य जैसे मेघों को तोडता है वैसे "शत्रुओंके शिरों को विक भिष कर।, हम लोग भी शत्रओं के नगरोंके मध्य | ऋग्वेद तीसरा मंडल सूक्त १८०१ में वर्तमान बीरों को नाश करें। | "उन प्रतिकूल बर्तमान शत्रुओं को भस्म | शत्रओं को मारने के गीतों
ऋगवेद तीसरा मंडल सूक्त ३० ऋ०६ में तो साराही वेद भरा पड़ा
“दूरस्थल में विराजमान शत्रुओं की है परंत उसमेसे हम कुछ एक
। वाक्य स्वामी दयानन्दके वेद | ऋगवेद तीमरा मंडल सूक्त ३० ३०१५ | भाष्य से नाचे लिखते हैं। | "जो मारनेके योग्य बहुत विशेष शस्त्रों ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त ३० ऋचा ३ | वाले शत्रु मनुष्य हों उनका नाश क
हे सर्यके समान वर्तमान इम संग्रामो | रके बढ़िये ।" में"उमहोम करने वाले के समान श ऋगवेद चौथा मंडल सूक्त ४ ०४-५ अनओं को युद्ध की आग में होमते हुए | “शत्रुओं के प्रति निरन्तर दाह देखो। अग्नि के समान ।
"शत्रुओंका अच्छे प्रकार नाश करिये | ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त २१ ऋचा ५/
और बार बार पीडा दीजिये।, जिस अमि वायुसे शत्रुजन पुत्रादि |
। ऋगवेद चौथा मंडल सूक्त १७ ०३ रहित हों उनका उपयोग सब लोग
"शस्त्र को प्राप्त होते हुए बलसे शत्रुक्यों न करें।
ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ३२ ऋचा१२ | ओं की सेना का नाश करो और सेना साप शत्रुनोंको बांध शस्त्रोंसे काटते | से शत्रुनोंका नाश करके रुधिरोंको ब.|
इस ही कारख यवों में हम आपको हो।" अधिष्ठाता करते हैं।
स्वामी दयानन्दजीके अयों के अनु. अग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ३८ ऋचा३ | सार वेदोंके पढ़ने से यह भी मालम | जिम प्रकार वायु अपने बल मे वृक्षा- होता है कि जिम ग्राम वासियों ने दि को उग्बाइ के तोड़ देती है वैसे | वेदके गीत बनाये हैं उनकी कह वि-! शोंकी सेनाओंको नष्ट करो और | शेष ग्राम वासियों से शत्रता पूरी