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मार्यमतलीला। २७ " हे विद्वान लोगो ! हमको-उपदे- समय में प्रागे को बढ़ावें और बलवान श करो और जो यह बड़ी कठिनता | आप दीपते हुए अग्नि की लपट से से टूट फूटे ऐसे विद्यापामादि के रिश- जैसे काष्ठ मादिके पात्रको वैसे दुःशीमा ये बना हुवा घर है वह हमारे लि- दुराचारी दस्यु को जलानो इस से ये देशो ।,
| मान्यभागी होश्रो।" ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त ४२ ऋ०३ ___ ऋग्वद प्रथम मंडल सूक्त ५२ ऋ०५ " कल्यान के कहने वाले होते हुवे
८-१० . जो सूर्य के समान अपने शश्राप उत्तम घरोंके दाहिनी ओर से
खां की दृष्टि करता हुवा शत्रुओं को शब्द करा अथांत उपदेश करी जिप्तसे
प्रगल्भतादि खाने हारा शत्रों को चोर हम लोगों को कष्ट देने को मत म
छदन करने वाले शख समूह से युक्त मर्थ हो ।
सभाध्यक्ष हर्ष में इस युद्ध करते हुए ऋग्वेद तीमरा मंडल सूक्त २१ ऋ२९ / शत्र के ऊपर मध्य टढी तीन रेखा"हे संपर्ण उत्पन्न पदार्थो के ज्ञाता
ओं से सब प्रकार ऊपर की गोल चिकने घत और छोट पदार्थोके दाता
रेखा समान बगको सब प्रकार भेदन विद्वान !,
करता है,-हे मभापति भजाओंके आर्यमत लीला। .
मध्य लोहे के शस्त्रों को धारण की.
जिये बीरों को कराइये ॥ राजपूताने के पुराने राजाओं की क- | "बलकारी बज़ के शब्दोंसे और भयमे थानों के पढ़ने से मालूम होता है कि | बनके माथ शत्रु लोग भागते हैं।" राजा लोग लडाई में भाटों को अपने | ऋग्वंद प्रथम मंडल मुक्त ६३ ऋचा २-६-७ साथ ले जाया करते थे जो लड़ाई के “हे सभाध्यक्ष जिस बज से शत्रओं कविता सुना कर बीरों को लड़ने की को मारते तया जिम से उनके बहुत उत्तेजना दिया करते थे। इस प्रकार नगरों का आतने के लिये इच्छा करते के गीत वेदों में बहुत मिलते हैं। हम और शत्रओं के पराजय और अपने स्वामी दयानन्द के वद भाष्य से कुछ बिजय के लिये प्रतिक्षण के जाते हो बाक्य इस विषय के नीचे लिखते हैं। | इमसे मब विद्याओं की स्तुति करने ऋग्वद प्रथम मंडल सूक्त १७५ ऋचा ३ | वाना मनुष्य आप के भुजाओं के बल
"हे सेनापति जिम कारण शूरबीर के आश्रय से बज को धारण करताहै। निडर सेना को संबिभाग करने अर्थात् हे मभाध्यक्ष संग्राम में श्राप को नि पद्मादि व्यूह रचना से बांटने वाले श्चय करके पुकारते हैं। श्राप मनुष्या और युद्ध के लिये प्रवृत्त | हे उत्तम शस्त्रां से युक्त"सभा के नकिये हुए रथ को प्रेरणा दें अर्थात् युद्ध | धिपति शत्रुओंके साथ युद्ध करते हुवे
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