________________
प्रार्यमतलीला ॥
ऋग्वेद प्रथम मंडन्स मूक्त १८० ऋ० ३ ।द्वानजन स्तुति करते हुए धारवाकर
"जो युवावस्था को नहीं प्राप्त हुई/ते हैं उन्हीं की अच्छे प्रकार से प्रशंमा उस गौ में अयस्यासे परिपक्व भाग गौका | करता हूं, पूर्वज लोगोंने प्रसिद्ध किया हुआहे", ऋग्वेद प्रथममंडल सूक्त ११४ ऋ० ऋग्वेद प्रथम महल सूक्त १७६ ऋ०६ । “हे सभापति हम लोगों में से बडे वा
हे योग के ऐश्वर्य का ज्ञान चाहते पढे लिखे मनुष्यों को मत मारो हुए जन जैसे योग जानने की इच्छा .
और हमारे बालक को मत मारो ह. याले किया है योगाभ्यास जिन्हों ने |
मारे जवानोंको मत मागे हमारे गभ उन प्राचान योग गुणासाहया को मत मारो हमारे पिता को मत के जानने वाले विद्वानों से योगमा
मारो माता और स्त्री को मत मारो को पाकर और सिद्ध कर सिद्ध होते अर्थात् पोग सम्पन्न होते हैं वैसे होकर।"
और अन्याय कारी दुष्टों को मारो । ऋग्वेद प्रथम मंडल मुक्त ११ १०५
ऋग्वेद तीसरा मण्डल सूक्त ५५ ३० ३ "जिस बलसे वर्तमान सनातन नाना |
नाना | "उन पूर्वजनों से सिद्ध किये गये प्रकारको बस्तियों में मून राज्यमें परम्प
कर्मों को मैं उत्तम प्रकार विशेष करके रासे निवास करते हुए बिचारवान वि-प्रकरश करूं।" द्वान् जन प्रजाजनोंको चेतन्य करते हैं. ऋग्वद छठा मण्डल सक्त ३
हे बलवान के सन्तान ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६३ ऋ३।४/
। ऋग्वंद छठ। मण्डल सूक्त ५ | “म अग्निके दिव्यपदार्थ में तीन प्रयो
हे वनवान के पुत्र | जन अगले लोगों ने कहे हैं उस |
____ ऋग्वंद लठा मण्डल मूक्त १२ को तम लोग जानो-तीन प्रकाशमान हे वलिष्ठ के पत्र । अग्नि में मो बन्धन अगल लागाने अवद छठामराइल सूक्त १५ कहे हैं उसीके ममान मेरे भी हैं-" हे वनवानके सन्तान ।
अग्वेद सप्तम मगनुल नक्त ६ ऋ०२ । ऋग्वद सप्तममंडल सक्त १ | "हे गणन अग्निके ममान जिन आपकी हेव नवान केपुत्र-हेवलवान विद्वानपत्र वाणियांमे मेघ के तुल्य वर्तमान शत्रुओं ऋग्वेद सप्तममंडल मुक्त ४ के नगरोंको विदीर्ण करने वाले रामा हे बलवान के पुत्र के बडे पर्वजराजाओं ने किय ऋग्वेद सप्तमहल सूक्त ८ कर्मों को
हे अलिबलवान् के सत्यपुत्र ऋग्वेद मप्तम मंजुन्न मुक्त ५३ ऋचा १ ऋग्वंद सप्तममंडल सूक्त १५ “उन मूर्य्य और भूमिको अगले विहे अति बलवानके पुत्र राजन् ।
---