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शार्थमसलीला ||
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और
कारण स्वामी जी लिखते हैं कि इसलिये संस्कृत ही में प्रकाश किया जो किसी देश की भाषा नहीं fee से चलकर इस ही लेखमें इस ही को पुष्ट करते हुए स्वामीजी लिखते हैं" कि सब देशवालों को पढ़ने पढ़ानेमें तुझ्य परिश्रम होनेसे ईश्वर पक्षपाती नहीं होता " स्वामीजीका यह कथन बिल्कुल सत्य होता यदि यह प्रपने आपको बेदों का बनाने वाला कहृते परन्तु यह तो ईश्वरको वेदों का प्रकाश करने वाला बताते हैं तब स्वा मीजीका यह लेख कैसे संगत हो सक. ता है क्या स्वामीजीका यह आशय है। कि सृष्टि की आदि में में बंद प्रकाश किये अम्य भाषा बोलते थे उस प्रचलित भाषा से अर्थात् संस्कृत भाषा प्रकाश किया ? ऐसी
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नुष्यों की नहीं थी उन्होंने जो भाषा सीखी वह वेदों से हो मीखी। इसके प्रतिरिक्त यदि वह आदि में उत्पन हुवे मनुष्य कोई और बोली बोलते थे और बंद जिसके त्रिहून मनुष्य को कोई ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है वह संस्कृत में दिया गया तो उन मनुष्यों में ईश्वर ने वेद को प्रकाश किस तरह किया होगा । ? वह लोग तो पशु समान जंगली और अज्ञानी थे अपनी कोई
में उत्पन्न हुवे समुष्य जो भाषा बोलने ये वह भाषा उन को किमने सिखाई । और किस रीति से सिखाई ? क्या उ उन्होंने अपने बोलने के बास्ते अपने आप भाषा बनाली ? परन्तु प्राप तो यह कहते हैं कि मनुष्य बिना सिखाये कोई काम कर ही नहीं सकता है और अपने बोलने के वास्ते भाषा भी नहीं बना सकता है इस हेतु लाचार प्राप को यह ही कहना पड़ेगा कि वेदों के प्रकाश होने से पहले कोई भाषा म
जंगली भाषा बोलते होंगे परन्तु उम मूर्खों को छोटी मोटी सब बात सीखने के वास्ते उपदेश मिला संस्कृत में जो उस की बोली नहीं थी तो इससे जिन मनुष्यों | मनको क्या लाभ हुआ होगा ? वेदांका गये वह कोई | उपदेश प्राप्त करने से पहले उनको संऔर ईश्वर मे | स्कूल भाषा पढ़मी पड़ी होगी परन्तु भिन्न भाषा में पढ़ाया किसने और उन्होंने पढ़ा कैसे ? में वेदों का इससे विदित होता है कि वेदोंके प्रदशा में वेदों | काश करने से पहले ईश्वर ने संस्कृत दहाके प्रकाश होने के समय सृष्टिकी शादि । करण और संस्कृत कोव और संस्कृत की अन्य बहुत सी पुस्तकें किसी विधि प्रकाश की होंगी जिनसे इतनी विद्या प्राप्त हो सके कि वेदों के अर्थ समझ में जा सकें और घंदों के प्रकाश करने से पहले सृष्टि की आदि में पैदा हुये - ज्ञान मनुष्यों के पढ़ने तथा संस्कृत भाषा पढ़ाने के वास्ते अनेक पाठशा लायें भी खोली होंगी और सर्व मनुष्यों को उन पाठशालाओं में संस्कृत पढ़ाई होगी। परन्तु इसकी संस्कृत पढ़ने के वास्ते जिससे वेदों का अर्थ समझ में