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मार्यमतलीला ॥ भाजावं कम से कम १५ धा २० वर्ष, मनुष्यों की बोलीथी परन्तु यदि वेदों लगते हैं आश्चर्य है कि इतने लम्बे को ईश्वरकृत कहा जाये तो यह भी समय तक यह लोग गीवित किस त-मानना पड़ेगा कि ईश्वर ने मनुष्यों रह रहे होंगे ! क्योंकि जब तक मनग्य को बह भाषा बोलने के वास्ते दीजो संस्कृत भाषा न सीख लेवे तब तक | वेदों में है। परन्त वेदों की भाषा उनको वेद शिक्षा किम प्रकार दीजावे
यह भाषा नहीं है जो संस्कृत भाषा और स्वामी जी के कथनानुसार मनुष्य कहलाती है चरण वेदों की भाषा को बिना वेदोंके कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर
| संशोधन करके ऋषि लोगों में संस्कृत सकता है न उसको भोजम बनाना आ सकता है और न कपड़ा पहनना और भाषा बन
| भाषा बनाई है अर्थात् ईश्वर को भाषा न घर बना कर रहना । इस कारण
| को संशोधन किया अर्थात् चाहे वह जप तक वह संस्कृत पढ़ते रहे होंगे | वेदों की भाषा ईश्वर की दी हुई थी तब तक पशु की ही समान विचरते | वा ईश्वर की भाषा थी वा जो कछ । रहे होंगे और डंगरों की तरह घाम थी परन्तु पी वह गंवार भाषा जिम ही चरते होंगे और ऐमी दशा में उनका संस्कार करके सुन्दर संस्कृत बनाई की भाषा ही क्या होगी क्योंकि जब
| गई। इस हेतु यदि वह ईश्वरको भाषा तक कोई पदार्थ जिनको मनुष्य काम |
थी तो ऋषिजन जिन्होंने संस्कृत बमें लाते हैं बना ही नहीं तब तक उन पदार्थों का नाम ही क्या रक्खा जा
माई वह ईश्वरमे भी अधिक जानधाम सकता है और पदार्थों के नाम रक्से
और ईश्वर से अधिक सुन्दर बस्तु ब-1 बिदून भाषा ही क्या बन सकती है? नाने बाले घे॥ इस कारण हमारे आर्य भाइयों को आर्यमत लीला। लाचार यह ही मानना पढेगा कि वेदों के प्रकाश होने के समय वह दी भाषा
[ख-भाग] बोली जाती थी जिस भाषा में वेदों
ऋग्वेद का मज़मून है और कम से कम यह
(५) कहना पढेगा कि वेदोंके प्रकाश होने से पहले कोई भाषा नहीं दी बरण
भाज करत अफरीका देश में हवशी | वेदों ही के द्वारा ईश्वर ने मनष्योंको | रहते हैं यह लोग अग्मि नलाना नहीं वह भाषा बोलनी सिखाई जो वेदों जानते थे बरण जिस प्रकार शेर वहा. में है। नतीजा इन सब बातों का यह थी अग्नि से पुरते हैं इस ही प्रकार हुप्रा कि घेदों के समय वेद की भाषा | ये भी डरा करते थे। अंगरेजों ने इन