Book Title: Aryamatlila
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Tattva Prakashini Sabha

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Page 38
________________ ( ३४ ) प्रार्यमतलीला ॥ हमारे चार्या भाइयोंका यह प्रदान | जाती है- सारे वेद में ढूंड ढांटकर एक तो ऋषा मिली पर उस में भी अनो खाही मुक्तिका स्वरूप स्थापित किया गया परन्तु इस समय इस लेख में तो हमको यह नहीं दिखाना है कि मुक्ति का स्वरूप क्या होना चाहिये था वरग इस ममय तो यह कथन जारहा है कि वेदों की एक सूक्तकी प्रत्येक ऋत्वा का भी विषय नहीं मिलता है वरण एकही सूक्त की एक ऋथा में कुछ है और दूसरी में कुछ और इस ही मूक्त की छठी ऋचा को स्वामी जी के के अनुमार देखिये वह इस प्रकार हैः है कि वेदोंमें मुक्ति आदिक धर्मके वि वय तो अवश्य कथन किये होंगे । य द्यपि वेदो में ऐसा कथन तो वास्तव में नहीं है परन्तु हमने डटांड कर एक सूक्त की ऐसी ऋचा तलाश की है जिसमें मुक्ति शब्द को, छार्थ लिखते हुये जिस तिस प्रकार लिख ही दिया है उसका अर्थ स्पष्ट सुलने के वास्ते हम वेदोंके शब्दों सहित उसको स्वामीजीके बेदमाध्यमे लिखते हैंऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १४० ऋचा ५ " ( यत् ) जो ( कृष्णाम् ) काले बर्ण के ( अभ्त्रम् ) न होने वाले ( महि ) बड़े (वर्यः ) रूप को ( ध्वसयन्तः ) बिनाश करते हुए मे ( करिक्रतः ) अत्यंत कार्य करने वाले जम ( वृथा ) मिथ्या ( प्रेरते ) प्रेरणा करते हैं (ते) वे ( अस्य ) इस मोक्ष की प्राप्ति को नहीं योग्य हैं जो (महीम् ) बड़ी (प्रदनिम् ) पृथिवी को ( अभि, मर्मृशत् ) सब ओर से अत्यन्त महता ( अभिव सन् ) सब ओर से श्वास लेना ( नानदत् ) अत्यंत बोलता और ( स्तनयन्) बिजली के समान गर्जना करता हुआ गुणों को ( सीम् ) सब ओर से ( एति ) प्राप्त होता है (आत् ) इसके | अनन्तर वह मुक्ति को प्राप्त होता है- -" वाह वाह क्या बिलक्षण सिद्धान्त स्वामी जी ने वेदों में दिखाया है कि जो मनुष्य काले रंगका है उसकी मुक्ति नहीं हो सकती है और जो बहुत बोलता और गरजता है उसकी मुक्ति "जो अलंकृत करता हुआ साधर्म की धारणा करने वालियों में अधिक नम्र होता वा यक्ष संबंध करने वाली स्त्रि यों को अत्यन्त बात चीत कह सुनाता | वैन के समान बलको और दुख से पकड़ने योग्य भयंकर सिंह मोंगों को जैसे बैसे यल के समान आचरण करता हुआ शरीर को भी सुन्दर शोभायमान करता वा निरन्तर चलाता अर्थात् उनसे पेश करता वह अत्यन्त सुख को प्राप्त होता है-" इन हो सूक्त नं० १४० की सातवीं ऋचा के अर्थ को देखिये वह इस म कार है: "हे मनुष्यो जैसे यह अच्छा ढांपने वा मुख फैलाने वाला विद्वान् सुन्दरता से अच्छे पदार्थों का ग्रहण करता वैसे जानता हुवा नित्य मैं ज्ञानवती उत्तम स्त्रियों के ही पास सोता हूं । जो माता

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