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श्रार्यमतलीला ||
( ३३ )
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तृप्त हो जाते हैं और उनको ईश्वर वा क्य कहते हैं - यदि वह वेदोंको पढ़ें तो अवश्य उनको ज्ञान प्राप्त हो और अ वश्य उनके हृदय का यह अंधकार दूर हो ।
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|| आर्यमत लीला ||
( ४ )
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किसी प्रकार की भी भाषा नहीं जान ते थे कुछ ज्ञान वा शिक्षा देता तो क्या कबिलाई में शिक्षा देता और कविताई मी सिलसिलेवार नहीं वरन पृथक २ गीतों में, और गीत भी एक एक ही विषय के सैकड़ों और गीतोंका भी सिलसिला नहीं कि एक वातकी शिक्षा देकर उस बात के उपरान्त जो दूसरी arin प्रत्येक गीतको सूक्त कहते हैं बात सिखाने योग्य हो दूसरा गीत दक्ष | और इन गोतोंकी प्रत्येक कलीको ऋचा दूसरी बातका हो वरण वेदों में तो कहते हैं- स्वाथीजी के अर्थके अनुसार स्वामीजी के अर्थोके अनुसार यह गीत दोंका मजनून इतना असंगत है कि ऐसे बिना सिलमिले के हैं कि यदि एक प्रत्येक सूक्त अर्थात् गीतके मज़मूनका गीत की प्रशंसा में है तो दूसरा ही सिलसिला मिलता हुआ नहीं है ara fare में और तीसरा राजाकी बरण एक सूक्तकी ऋचाका भी मज़ स्तुति में और चौथा बायुको प्रमा में और पांचयां संग्राम करने और मून सिलसिलेवार नहीं मिलता है अर्थात् एक ऋचा एक विषयको है तो शस्त्रोंसे बेरीको मारने काटने के विषय दूसरी ऋचा बिल्कुल दूसरे बिषय की, में और छठा सोम पीने के उपदेश में फारसी व उर्दू में जो कबि लोग ग़जल और फिर राजा की स्तुति में और बनाया करते हैं उन ग़जलों में तो बेफिर अति की प्रशंना में और फिर शक यह देखने में जाता है कि कवि सोमपान के विषय में और फिर वायु को इस बातका ध्यान नहीं होता है की प्रशंसा में गरज इमही प्रकार ह । कि एक ग़जल की सब शेरें एक ही जारों गीतोंका बेतुका सिलसिला चला | बिषय की हों बरन उसका ध्यान इस गया है और जिस विषय का जो गीत | ही बात पर होता है कि एक ग़जल मिलता है उसमें बहुधा कर वह ही की सब शेरोंकी एकही तुक हो अर्थात् बात होती है जो उस विषय के पहले रदीफ़ और क़ाफ़िया एक हो परन्तु गीलों में थी यहां तक कि एक विषय संस्कृत और हिन्दीकी कबिताई में ऐसी के बहुत से गीतों में एक ही दृष्टान्त वात देखने में नहीं आई -व और एक ही प्रकार के शब्द मिलते | स्वामी जी के अर्थ किये हुये बंदों ही में हैं- हमको शोक है तो यह है कि मिलती है कि एक ही राग अर्थात एक हमारे भाई वेदोंको पढ़कर ही सूतकी प्रत्येक ऋचा अर्थात् कली नहीं देखते हैं वरण वेदों के नामसे ही । का एक टूमरे से बिलक्षण ही विषय है ॥
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--वह बात
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