________________
भार्यमनलीला ॥
(२५) हमागी ममझ में तो जो लोग सी. ए. बापत बड़े २ महान् हज़ारों ग्रन्थ रऔर एम. ए. तक पचामों पक ग-च िदो जिनके द्वारा प्रतिवर्ष पंचांग णित विद्या की पढ़ते हैं और फिभी प्रार्थात मंत्री बनाते हैं कि अमुक दिन यह कहते हैं कि गनिजल विद्यामन अमुक ताका निकलेगा और अमुक दिन अभी कुछ नहीं सीखा उनकी वी भन्न अम्त होगा प्री प्रमुक दिन अमुक समय है उनको उपरोक्त यद तीन चार वेदले चान्द गर्यका ग्रहण होगा और इतना मंत्र सुननेने चाहिये बम इनाहीसे भागा । परन्तु आप नो यह ही कहेंगे गणितविद्या प्राकानी और परिपूण कि जबदाम चान्द और मर्यकानाम को जावेंगे इमही प्रकाः जो विद्यार्थी भागया ना मात्र जयोतिष विद्या वेदों स्कूल में अंक गणित (Arithmetic) में गति होगई और वेदों हीसे सर्व बीज गणित अर्थात् जबर मकाना मंसार में कम विद्याका प्रकाश हुमा । (Ayera ) और रेग्या गगन अर्थात् धन्य है हमार वार धन्य है ऐसे वदों उसले दम ( Eclil ) पर रात दिन को और स्वामी दयानन्दगी को। वर्षों टक्कर मारते हैं उनको शायद यह क्यों मरीजी संमारमें हजारों और खबर नहीं होगी कि बदाके तीन चार :
लारवा शौषधि है और इन श्रीधियों हो मंत्रों के सुनने मे मा गणिन विद्या।
कं गुणा के विचार पर अनेक महान् आजाती है यदि उनको यह खबर पुस्तक रचा हुई है और राग भी हजाहोजावै तो वेशक यह महान् परित्राम
रों प्रकार के हैं और उनके निदानके से बचनाव--और इन मंत्रों को देखकर इत् भी अनेक पुस्तके हैं परन्तु यह वशक मबको निश्चय और प्रदान रिया भी तो वदामे ही निकलीहोगी कर लेना चाहिये किमानयद्यपि वदों में किमी औषधिका नाम मर्ष विद्या वदों ही में है और वेदों और उसका गगा और एक भी बीमारी हो से अन्य देशों में गई है--मनष्यने
का नाम और उनका निदान वर्णन नहीं अपनी बुद्धि विचारमे कुछ नहीं किया किया गया है परन्त क्यों स्वामी जी क है-धन्य है ऐसे वेदको जिममें इस प्रहना तो यह ही चाहिये कि ओषधि कार मंमारका मर्व विज्ञान भगा या विद्या जितनी संसार में है वह मय वेदों है ! और धन्ग है स्वामीजी को मिन्द्रों में मौजद है और ऐमा कहने के वास्ते ने ऐमे बदोंका प्रकाश किया। तभी तो प्रथा है जिसका कुछ ज
क्यों स्वामीजी ! यद्यपि नागोंने चांदबाव ही नहीं हो सकता है अथात् जिस सूर्य और नागगणाझी विद्याको अ-प्रकार बंदों में एक और एक दो लिखा त् गणित ज्योतिषको बड़ा विम्नार दे । मानिने से मर्व गणित विद्या वदों रक्खा है और इनकी चाल जानने की में भिद्ध होती है इसही प्रकार वेदों
पोत