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प्रार्यमतलीला। में सोम पदार्थका नाम आने से जिम | का मनोर्थ मिट्ट करते हैं जो मच्चे प्र का अर्थ स्वामी जीने किमी किसी स्थान द्वान से इनको भक्ति और पजाकर तुमें औषधियों का समूह किया है मर्वही म्हारी श्रद्धा में कुछ फरक रहा होगा
वधियांका वरई न वदाने सिद्ध होगया जिममे कार्य मिद्ध नहीं हुआ । परन्तु और यह भी मिद होगा कि श्रीषधि हे प्रार्य भाइयो तुम बिद्यावान और की मब विद्या वेदोंसे ही मर्य संसार लिखे पढ़े होकर किम प्रकार एन स्वामी में फैली है?
जी को अर्थ के किये हुये वेदों पर श्रद्धा इमही प्रकार यद्यपि अन्य अनेक ले आये और यह कहने लगे कि संमारकी विद्याओं का नाम भी वेदों में नहीं | मर्च विद्या वेदों ही में भरी है तुम्हारी है जो संमार में प्रचम्मित हैं परन्तु वदों परीक्षा वास्ते तो कोई देवी देवता में ऐमा शब्द तो पाया है कि सर्व विद्या
नहीं हैं जिनकी परीक्षाके लिये प्रथम पढ़ो या सीखो फिर कौन मी विद्या
ही श्रद्धान लानेकी भत्रश्यक्ता हो वरह गई जो वेदों में नहीं है और कौन
| रण तहको तो बंदा प्रथात् पुस्तकके कदमका है कि वेदों की शिक्षा के दि.
मजमून की परीक्षा करनी है जिमकी दन कोई विद्या किमी मनायले अपनी परीक्षा के वास्ते महज उपाय जम पविचार बद्धिसे पैदा करनी : इम प्रजनम्तकका पढ़ना और उस पर विचार यक्ति से तो हम भी कायल हो गये- करना है फिर तुम क्या परीक्षा नहीं मार्य भाइयो ! हिन्दस्तान में अमे-करने हो जिनसे वदाको विल्कल बेस
को देवता पजे जाते हैं जिन को की प्रशंसा जैमी अब कर रहे हो न क बाबत स्वामी जी ने लिखा है और रनी पछु। बंदा में क्या विषय है ? यह भाप भी कहते हैं कि इम में अविद्या तो हम आग च नकर दिखावगे परन्तु अंधकार होजानेके कारण मूर्य लोगों यदि आप जरा भी परीक्षा करना चा को जिमने जिम प्रकार पाहा बद-हते हैं तो हम बदाक बनाने बालेका का लिया और पेटा) नागे। ने देवी ज्ञान आपको दिखाते हैं:देवता स्थापन करके और उनमें अनेक ऋग्वंदके पांचवें मंडलके सूक्त ४५ की गतियां वर्णन करके जगतके मनुष्यों मातवी ऋचाके अर्थ में स्वामी जी ने को अपने काम में कर लिया । एक तो इस प्रकार लिखा है: वह लोग मूख जो इम प्रकार वह- "जिम मे दम मंमारमें नवीन गमन काये में आये और दृमरे यदि कोई वाले दश वैत्र श्रादि महीने वर्तमान देवी देवता की शक्तिको परीक्षा कर- हैं" फिर इसही वक्त का ११ वी ऋचा ना चाहे तो पजारियों को यह कहने के अर्थ में पाप लिखने हैं:का मौका कि यह देयो देबना दी। "हे मन यो जिसमे नबीन गमनवाले