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छिडको,
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आर्यमतलीला ॥ निर्मल जल को अच्छे प्रकार उपमित्त । आदिमें नहीं बने। वेशक वेदोंका इस करी अर्थात् उन रथों के भाग श्रीर | प्रकारका अर्थ इस बातको सिद्ध करने पवनके कल घरोंके समीप प्रज्छे प्रकार के वास्ते काम में आ सकता है कि
हिन्दुस्तान में भी किसी ममय में मई सक्त ८८ की ०२ के अर्थमें लिख
प्रकार की विद्या थी और रेल और
जहाज आदिक जारी थे परन्तु स्वामी _ “जैसे कारीगरीको जामने वाले
जी तो यह कहते हैं कि वेदों में सर्व विद्वान् लोग उत्तम व्यबहार के लिये
प्रकार के विज्ञान की शिक्षा है जो अच्छे प्रकार अनिके तापसे लाल वा
मष्टि की आदि में ईश्वर ने उन मनअग्नि और जलके संयोगकी उठी हुई
प्यों को दी थी जो गिना मा बापक भाफोंसे कुछ क श्वेत जोकि विमान
पैदा हुये थे और जिम्हों ने मकाम मादि रथोंको चन्नाने वाले अर्थात् अतिशीघ्र उनको पहुंचाने के कारण
बस्त्र बर्तन प्रादिक भी कोई धम्तु न
हीं देखी बरन उनकी दशा विनम्न भाग और पानी की कस्लोंके घररूपी
ऐमी थी जेभी जली जानबरों की घोडे हैं उनके साथ विमान प्रादि । हम करती है। रथकी बजके तुल्य पहियोंकी धारमे स्वामी जी ने और भी कई मकों प्रशसित बनने अन्तरिक्ष वायुको का- में इम का वर्णन मि.या है। टने और उत्तेजना रखने वाले शूरना
| ऋग्वंद प्रथम मंडन सूक्त १०० ऋ०१६
| के अर्थ में वह सप्रकार लिखते हैं:-- धीरता बुद्धिमत्ता आदि गुणोंमे अद्ध
! "जिमका प्रकाश ही निवाम है वह त मनप्य के ममान मार्गको हनन करते और देश देशान्तरको जाते आते
नीच म्नान ऊपर से काली अग्नि की हैं ये उत्तम सुखको चारो ओरमे प्राप्त
ज्याला नोह की अच्छी २ बनी हुई होते हैं वैमेम भी इसको करके श्रा
कलाओं में प्रयुक्त की गई वंग वाले नन्दित होवें-"
विमान आदि याम ममूह को धारणा इम अर्थ के पढ़नेसे मालम होता है। करती हुई प्रानन्द की देने वागी मकि स्वामीशी को अंगरेजों के रेल जहान नुष्यों के इन मन्तानों के निमिम धन विमान प्रादिकका वर्णन सुनकर उ- की प्राप्ति के लिये वर्तमान है उमको तेजना होती थी कि हम भी ऐमी हो | जो अच्छे प्रकार माने वह धनी होता है।" कने बनाव। यही भाव स्वामीजी इस अर्थ मे यह मालूम होता है कि का घेदोंका अर्ध करते हुये वेदों में जिनको यह उपदेश दिया गया है वह आगया । पाल शोक है कि इमभे कम बनाना तो जानते थे परन्तु उस यह स्पष्ट मिद्ध होगया कि येद नष्ट की । अग्नी को नहीं जानते थे जो ऊपर से