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ॐ अर्ह श्री भगवती सरस्वती श्री अहंदगीता
अध्याय प्रथमः सरस्वती सदा भूयादाहती शाश्वती श्रिये । पूर्णा प्रभातसञ्जातप्रभेवेन्दुविवस्वतोः ॥ १ ॥
अन्वय-इन्दु विवस्वतोः प्रभात सञ्जात प्रभा इव पूर्णा शाश्वती आर्हती सरस्वती सदा श्रिये भूयात् ॥ १ ॥
अर्थ-चन्द्रमा एवं सूर्य की प्रभातकालीन प्रभा के समान पूर्णा, शाश्वत काल से चली आई एवं चलने वाली आहेत् धर्म की सर्व समर्था अर्हद्वाणी-सरस्वती सबके लिए कल्याण कारिणी हो ।
विवेचन--'प्रभातसंजात प्रभा' से तात्पर्य है प्रभातकालीन ज्योति जो पुष्टिदायक होती है। चन्द्र की प्रभातकालीन किरणों में अमृत का वास रहता है बाल रवि की किरणों में विपुल तेज एवं पुष्टि की प्रबलता रहती है। जैसे चन्द्र तथा सूर्य की ज्योति अशेष संसार को प्रकाशित करने के कारण पूर्णत्व की गरिमा से सुशोभित हैं वैसे ही समग्र आहेत् साहित्य पर प्रकाश डालने के कारण यह सरस्वती भी पूर्ण है। यह शाश्वत इसलिए है कि यह त्रिकाला. बाधित है। वह पूर्णा इसलिए भी है कि उसकी शरण में जाने से ज्ञान का अशेष प्रकाश प्रकट होता है। उसकी शक्ति सकल लोक प्रकाशिका है। यह सरस्वती अर्हत्
अध्याय प्रथमः
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