Book Title: Arhadgita
Author(s): Meghvijay, Sohanlal Patni
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 235
________________ अन्वय-स्वस्वशासनपद्धत्या प्रभुः अनेकधा वर्ण्यतां तादात्म्यात् अनन्यरूपत्वात् श्रीपरमेश्वरः एकः ॥२१॥ अर्थ-इस प्रकार अपने अपने धर्म की पद्धति के अनुसार एक ही परभेश्वर को अनेक प्रकार से वर्णित करो परन्तु सभी रूपों में तादात्म्य होने के कारण तथा एक रूप दूसरे रूप से भिन्न नहीं होने के कारण श्री परमेश्वर तो वस्तुतः एक ही है। ॥ इति श्री अर्हद्गीतायां द्वाविंशतितमोऽध्यायः ॥ २१० अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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