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अर्थ-गुरु के प्रति विनय बताने के लिए आसनसे उठने वाले पुरुष के एकाशन व्रत का भंग नहीं होता है इसलिए सिद्धि चाहने वाले व्यक्ति को गुरु की सेवा करनी चाहिए।
सूर्याचन्द्रमसोरूच्चं पदं शास्त्रे गुरोः स्मृतम् । गुरोः पूर्णानुभावेन सिद्धियोगो हि निश्चितः ॥ १७ ॥
अन्वय-शास्त्रे गुरोः पदं सूर्याचन्द्रमसोः उच्चं स्मृतम् । गुरोः पूर्णानुभावेन सिद्धियोगः हि निश्चित; ॥ १७॥
अर्थ-शास्त्र में गुरु के पद को सूर्य और चन्द्रमा से भी उच्चतम बताया गया है। गुरु की पूर्ण कृपा से निश्चित रूप से सिद्धियोग प्राप्त होता है। ज्योतिष में गुरुवार को दिन पूर्णा (पंचमी दसमी पूर्णिमा) तिथि होने पर (निश्चय) सिद्धियोग माना जाता है ।
ऊनं कुर्याद्गुरुः पूर्ण गुरोगौरवमश्नुते । गुरोः स्थानेऽपि मांगल्ये मंगलस्य सुहृद्गुरुः ॥ १८ ॥
अन्वय-गुरूः ऊनं पूर्ण कुर्यात् (यः) गुरोः गौरवं अश्नुते गुरोः मांगल्ये स्थाने अपि गुरू मंगलस्य सुहृत् ॥ १८॥
अर्थ-गुरु न्यून शिष्य को पूर्ण करते हैं यही गुरु का गौरव है। गुरु मांगलिक स्थान पर ही है। ज्योतिष शास्त्रानुसार भी ग्रहोमें गुरु की मंगल से मित्रता है।
गुरोरेकाग्यमातन्वन् गणेषु प्रथमः श्रिये। गुरोरतिक्रमे दुःखं वक्रतायां च जन्मिनां ॥ १९ ॥
अन्वय-गुरोः गणेषु (गुणेषु) एकाग्यं आतन्वन् नरः श्रिये प्रथमः (भवति ) गुरोः अतिक्रमे वक्रतायां च जन्मिनां दुःखम् ॥१९॥
अर्थ-जो गुरुओं में एकाग्र भावना करता है वह सब समूह में प्रथम मंगल का पात्र बनता है अर्थात् समृद्धि का सर्वप्रथम पात्र बनता है।
चतुर्विशोऽध्यायः
अ. गी.- १५
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