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अन्वय-चतुर्विंशतिनाडीभ्यो ऊनं दिनं निशा च न स्यात् । परे चतुर्विंशत्यक्षरात्मा गायत्रीसूत्रिता ।। १५॥
अर्थ-चौबीस घड़ियों से कम का दिन और रात नहीं होती है और अन्य शास्त्रों में भी गायत्री मंत्र में २४ अक्षर गूंथे हुए हैं।
मातृका सौभाग्यवती खटिकालेखनात्सिता। चतुर्विंशतिमेवाख्य-जिनानां स्वरूपतः ॥ १६ ॥
अन्वय-खटिका लेखनात् सिता मातृका सौभाग्यवती जिनानां स्वरूपतः चतुर्विंशति एव आख्यत् ॥१६॥
अर्थ-खडि या मिट्टी से लिखने के कारण श्वेत दिखने वाली वर्णमातृका सौभाग्यवती होती है वह जिनेश्वर भगवन्तों के स्वरूप होने के कारण २४ ही कही गई है।
स्वयं राजंत इत्युक्ता स्वराः स्वयम्भुवो जिनाः। स्वयं सम्बुद्धभावेन वर्णाम्नायेऽपि सूत्रिताः ॥ १७ ॥
अन्वय-स्वयं राजन्त इति स्वराः उक्ता वर्णाम्नाये अपि सूत्रिता स्वयं सम्बुद्धभावेन जिनाः स्वयंभुवः ॥ १७॥
___अर्थ-व्याकरण शास्त्र में कहा गया है कि ( जिस प्रकार ) स्वयं प्रकाशित होने के कारण अकारादि को स्वर कहा जाता है जिनेश्वर भगवान् भी स्वयंज्ञान से प्रकाशित होने के कारण स्वयंभू कहे जाते हैं।
स्वरों को कण्ठ से बोला जाता है एवं इन्हें बोलने में जीभ को कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता। विश्व के सभी गूंगे एवं नवजात शिशु बिना किसी प्रयत्न के स्वरों का उच्चारण करते हैं।
स्वर्णवर्णात् षोडशानां षोडशादौ स्वरा जिनाः । वर्गीयपंचमाः शेषं यवलाश्च जिनाष्टकम् ॥ १८ ॥
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अईद्गीता
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