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अन्वय-तेन एव मातृकापाठे ओं नमः सिद्धं उच्यते मायाङ्गजो कृष्णः न वा रुद्रो नमस्कृतः ॥१०॥
अर्थ-इसी अनासक्ति से युक्त सिद्ध भगवान को "ॐ नमः सिद्धम्" मातृका पाठ में नमस्कार किया गया है और ब्रह्मा विष्णु और महेश को नहीं किया गया है। सर्वश्रेष्ठ प्राप्तिका साधन अनासक्त भाव है जो अईन् और सिद्ध परमात्मा में चरितार्थ होने के कारण ध्येयरूप होने को उत्सुक साधक के लिये वह परम पूज्य माने गये है। जैसा ध्येय वैसी प्राप्ति यह नियम है।
सिद्धे नानाभिधानानि यथा गुरूपदेशनम् । ओमित्याख्या तत्र मुख्या सर्वशास्त्रप्रतिष्ठिता ॥ ११ ।।
अन्वय-सिद्धे नानाभिधानानि यथा गुरूपदेशनम् तत्र ॐ इति मुख्या सर्वशास्त्रप्रतिष्ठिता ॥ ११ ।।
अर्थ-गुरु के उपदेशानुसार सिद्ध में नाना प्रकार के नाम हैं उनमें ॐ मुख्य नाम है जिसे सभी शास्त्रों में प्रतिष्ठा प्राप्त है।
रक्षत्यवति सर्वान् यः स ओमिति च शाब्दिकाः। अखंडमव्ययं चैतत् सिद्धस्यैवाभिधायकम् ॥ १२ ॥
अन्वय-यः सर्वान् रक्षति अवति स ॐ इति च शाब्दिकाः । एतत् अखंडं अव्ययं च सिद्धस्य एव अभिधायकम् ॥ १२ ॥
अर्थ-अब ॐ की परिभाषा देते हैं कि जो सब की रक्षा करे त्राण करे उसे वैयाकरणी ॐ कहते हैं और ये अखण्ड, अव्यय आदि विशेषण सिद्ध के ही वाचक हैं।
अर्हत्यर्चामिन्द्रकृता महन् वाच्योऽस्त्यकारतः । डप्रत्ययान्नामसिद्धः शुद्धः केवलरूपभाक् ।। १३ ।।
अहंदगीता
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