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एकविंशतितमोऽध्यायः
आत्मा का परम ऐश्वर्य
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[श्री गौतम स्वामी ने पूछा है कि मोक्ष सम्पदा का दाता वह अर्हत् , ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, शिव, बुद्ध अथवा और कोई है ? ..... श्री भगवान् ने उत्तर दिया कि लोकालोकमय ब्रह्म का ज्ञाता ही परमेश्वर है यह सर्वगत एवं आत्म वश है। यही आत्मा सारे संसार में व्याप्त होने के कारण विष्णु एवं कर्मानुसार जगत् को बनाने के कारण ब्रह्मा है, जगत् प्रकाशक होने के कारण सूर्य है। शिव अथवा सिद्ध इसी चिदानन्दमय ज्योति स्वरूप आत्मा के नाम हैं। गुणोदय से जब इस आत्मा के मोहनीयादि अष्ट कर्मों का नाश होता है तो इसमें पारमैश्वर्य प्रकट होता है। सिद्ध परमात्मा में सम्पूर्ण पारमैश्वर्य होता है अतः उनका ज्ञान, ध्यान एवं जप करना चाहिए। आत्मा में जब तक राग द्वेष है तब तक उसमें पारमैश्वर्य प्रकट नहीं हो सकता है अतः अतिशयों से युक्त शुद्ध आत्मा ही परमेश्वर हैं एवं महोदय चाहने वालों को उसका ही ध्यान करना चाहिए।]
अर्हद्गीता
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