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अर्थ-अब अहं की व्याख्या कर रहे हैं अ से अर्हन् तथा रेफ रूप ऋकार से (प्रथम तिर्थकर) ऋषभदेव का ग्रहण करना चाहिए तथा अं (म्) से अंतिम तिर्थंकर महावीर इन सब की संधि होने से ॐ की प्रतीति होती है। अर्थात् ॐ २४ तिर्थंकरोंका वाचक है ।
नमस्त्रिधार्चिते सोईन् विधिर्वा विष्णुरीश्वरः । स क इत्यादि शंकायां सिद्धमित्याह निर्णयात् ॥ २० ॥
अन्वय-त्रिधा अर्चिते नमः स अर्हन् विधिः विष्णु ईश्वरः वा स क इत्यादि शंकायां सिद्ध इति आह निर्णयात् ।। २० ॥
अर्थ-तीन प्रकार के प्रणिपात (नमस्कार) पूर्वक पूजित होने से वह अर्हत् ही ब्रह्मा विष्णु और महेश है। यदि कोई शंका करे कि वह कौन है तो निर्णय कर के यह कहते हैं कि वह सिद्ध ही है।
ज्योतिःशास्त्रे सिद्धशब्दा-चतुर्विंशतिसंख्यया । तावन्ती नति(ती)राख्यायि स्वयं मातृकयाऽन्वयात् ॥ २१॥
अन्वय-ज्योतिःशास्त्रे सिद्धशब्दात् चतुर्विशति संख्यया स्वयं मातृकयान्वयात् तावन्तीः नती आख्यायि ॥ २१ ॥
अर्थ-ज्योतिष शास्त्र में सिद्ध शब्द से २४ की संख्या ली जाती है। वर्णमातृका के २४ अक्षर होने के कारण इतने ही नमस्कार अर्हत् भगवान को किए गए हैं।
॥ इति श्रीअर्हद्गीतायां विंशतितमोऽध्यायः ॥
विशतितमोऽध्यायः
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