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षोडशोऽध्यायः
एकत्व भावना
A [ गौतम स्वामी ने पूछा कि सभी स्थानों में एकता की भावना कैसे
सम्भव हो सकती है ? वास्तव में संसार में तो प्रत्येक वस्तु में अर्थ क्रियाकारी प्रपंच दिखाई देता है।
भगवान ने उत्तर दिया- हे गौतम मूलरूप से भाव सद्भाव अथवा ब्रह्म एक ही है पर प्रकृति की उपाधि से वह द्विविध दिखाई देता है जिस प्रकार एक ही समय के प्रकाश और अन्धकार की उपाधि से दिन और रात दो भेद दिखाई देते हैं। केवलज्ञानी द्रव्य और पर्याय की भावना से संसार को देखता है क्योंकि द्रव्य की अपेक्षा से यह संसार नित्य है पर पर्याय की भावना से संसार अनित्य है। इसी प्रकार चैत्यन्य की गौणता से पुद्गल की अनन्तता दिखाई देती है परन्तु यदि संसार को गौण माना जाए तो चैतन्य की एकता एवं मुख्यता सिद्ध होती है । इस प्रकार चैतन्य के भाव और अभाव से बना यह द्वित्व विकल्पात्मक है परन्तु पारमेश्वर्य की सिद्धि के लिये सिद्ध और संसार में एकता देखनी चाहिये।
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षोडशोऽध्यायः
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