________________
अर्थ-मुनियों ने इस सम्यक् ज्ञान का फल वैराग्य बताया है इस विरति के बिना केवल सम्यक् ज्ञान को ही मानने वाला अवकेशी तत्त्वज्ञान से हीन ही माना गया। अर्थात् ज्ञान का प्रभाव विरती के रुप में आचरण में प्रत्यक्ष हो तब ही वह सम्यक् ज्ञान माना गया है वरना यह मिथ्याज्ञान है।
॥ इति श्रीअर्हद्गीतायां अष्टादशोऽध्यायः ॥
१७६
अर्हद्गीता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org