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लोकोऽलोकस्तथा जीवो-ऽजीवः परोऽपरः पुनः । रूप्यरूपी जडोदक्षः प्रत्यक्षो वा परोक्षकः ॥ ९ ॥ स्त्रीपुंसौ द्रव्यपर्यायौ शब्दोऽर्थोऽप्यशुभं शुभम् । रात्रिर्दिनं क्रियाज्ञानमेवंभावोभयी गतिः ॥ १० ॥
अन्वय-लोकः अलोकः तथा जीवः अजीवः पुनः परः अपर: रूपी अरूपी जडः दक्षः प्रत्यक्ष वा परोक्षकः ॥९॥
___ अन्वय-स्त्रीपुंसौ द्रव्यपर्यायौ शब्दो अर्थो अपि अशुभं शुभम् । रात्रिः दिनं क्रिया ज्ञानं एवं भावोभयी गतिः ॥१०॥
अर्थ-लोक, अलोक, जीव, अजीव, पर, अपर, रूपी, अरूपी, जड़, चेतन, प्रत्यक्ष, परोक्ष, स्त्री, पुरुष, द्रव्य, पर्याय, शब्द, अर्थ, अशुभ शुभ, रात, दिन, क्रिया, ज्ञान आदि में भाव की उभयात्मक गति दिखाई पड़ती है।
सक्रियश्चाक्रियो भावः सक्रियोऽपि च पुद्गलः । अक्रियोऽनंतनिस्संख्य-प्रदेशात्मा द्विधा मतः ॥ ११ ॥
अन्वय-सक्रियः च अक्रियो भावः सक्रियः पुद्गलः। अनन्तनिस्संख्यप्रदेशात्मा अपि च द्विधा मतः ॥११॥
अर्थ-यह सद्भाव अक्रिय भी है और सक्रिय भी। सक्रिय अवस्था में सद्भाव पुद्गल रूप भी होता है और अनन्त व असंख्य प्रदेशी होने से उसका अन्य प्रकार भी माना गया है (जिसे अक्रियकी संज्ञा दी गई है।)
अनन्तोऽपि वियत्काल-भेदात्संख्यातिगस्तथा । धर्माधर्मभिदा द्वेधा वियल्लोकादलोकता ॥ १२ ॥
अन्वय-अनन्तः अपि वियत् कालभेदात् संख्यातिगः तथा वियत्लोकात् अलोकता धर्माधर्मभिदा द्वेधा ॥ १२ ॥
अर्थ-अनन्त होते हुए भी काल के भेद से संख्य और धर्म-अधर्म के कारण लोकाकाश और अलोकाकाश वैसे दो प्रकार का (आकाश) १६२
अहंद्गीता
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