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और न मात्र आत्म ज्ञान की ही। मोक्ष जाने वाले जीवन्मुक्त केवली को भी ( अंत समय ) शैलेशी* क्रियाएं करनी पड़ती हैं।
जगुर्ज्ञानक्रियायोगे क्षणान्मोक्षं विचक्षणाः ।
योगाज्ज्योतिर्विदो वैद्या ऋषयः सिद्धिमूचिरे ।। ४ ।। ___ अन्वय-विचक्षणाः ज्ञानक्रियायोगे क्षणात् मोक्षं जगुः ज्योतिविदः वैद्या ऋषयः योगात् सिद्धिं ऊचिरे ॥४॥
अर्थ-ज्ञान और क्रिया के योग से क्षणभर में ही मोक्ष होता है ऐसा ज्ञानी ने कहा है। ज्योतिषियों ने सुयोग की प्राप्ति से (कार्य) सिद्धि होने की बात कही है, वैद्यो ने औषधी योग से रसायनादि योग बनाकर (स्वास्थ्य) सिद्धि की बात कही है और ऋषियों ने भी ( मन वचन और काया के ) योगाभ्यास से सिद्धि प्राप्ति बतायी है। अर्थात् सभी स्थानों में ज्ञान से प्रेरित क्रिया योग का महत्व है।
असत्याक्रिययाप्यंगी नेयो दर्शनभूमिकाम् । सदर्शनात् क्रिया शुद्धा ध्यानादिः केवलाप्तये ।। ५ ॥
अन्वय-असती अंगी आक्रियया अपि दर्शन-भूमिकां नेयः सदर्शनात् क्रिया शुद्धा ध्यानादिः केवलाप्तये ॥५॥
अर्थ-असत् भाव में स्थित जीव को सब प्रकार की शुद्धिपुरक क्रियाओं से सम्यग् दर्शन की ओर जाना चाहिए। इस सम्यग् दर्शन से शुद्ध क्रियाओं से ध्यानादि जीव को केवल्य प्राप्ति में सहायता होती है ।
वार्य ध्याने आरौिद्रे धायें धर्मोज्वलैः(ले)खलु । एतदर्थं जिनः प्रोक्ताः पंचधा नियमा यमाः ॥६॥
* मोक्ष में जाने के लिए ५ ह्रस्वाक्षर (अ इ उ ऋ ल) काल की एक शैलेशी क्रिया करनी पड़ती है उसमें समस्त काय योग का रोध करने के बाद आत्मा की मुक्ति होती है। अर्थात् अन्त दशा में भी क्रिया की आवश्यकता रहती है।
अष्टादशोऽध्यायः
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