________________
संहार कर्ता के रूप में जाना जाता है। अर्थात् यह ब्रह्म रूप भाव उत्पाद (ब्रह्मा) व्यय (शिव) और ध्रौव्य (विष्णु) रूप है।
एकस्य ब्रह्मणः सर्वे विवर्ताः प्रतिभान्त्यमी । अनंतशक्तेर्नानार्थाः क्रियाभावेन वास्तवाः ॥२०॥
अन्वय-अनन्तशक्तेः एकस्य ब्रह्मणः नानार्थाः क्रिया भावेन वास्तवाः अमी सर्व विवर्ताः प्रतिभान्ति ॥ २०॥
अर्थ-अनन्त शक्ति ब्रह्म में जो भिन्न भिन्न पदार्थ या विवर्त दिखाई देते हैं वे अपनी क्रिया का स्वरूप होने के कारण वास्तविक है।
परसंग्रहवागेपा विषयोऽस्या हि तात्त्विकः । स तात्त्विकस्तं यो वेत्ति ज्ञानवैराग्यसात्त्विकः ॥२१॥
अन्वय-एषा परसंग्रहवाक् अस्या विषयः हि तात्त्विकः यः ज्ञानवैराग्यसात्त्विकः सः तं वेत्ति ॥ २१ ॥
__ अर्थ-अन्य धर्मो की भी यही वाणी है एवं इसका विषय भी तात्त्विक है जो व्यक्ति ज्ञान एवं वैराग्य से सम्पन्न है वही तत्त्वज्ञानी इस तत्त्व को जानता है।
॥ इति श्रीअर्हद्गीतायां पञ्चदशोऽध्यायः !!
यः।
*
भईद्गीता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org