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एवं भावाभावरूपं द्वैविध्यं तद्विकल्पजं । मुक्ताभावैक्यमालोक्यं पारमैश्वर्यसिद्धये ॥ २१ ॥
अन्वय- एवं भावाभावरूपं तद्विकल्पजं द्वैविध्यं । पारमैश्वर्यसिद्धये मुक्ताभावैक्यमालोक्यं ॥ २१ ॥
अर्थ - इस प्रकार चैतन्य के भाव और अभाव से दिखाई देने वाला संसार विकल्पात्मक है परन्तु पारमैश्वर्य की सिद्धि के लिए सिद्ध और संसार में एकता देखनी चाहिए । एकतादर्शन का प्रयोजन है वीतरागता या पारमैश्वर्य सिद्धि |
षोडशोऽभ्ययः
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॥ इति श्रीअहद्गीतायां षोडशोऽध्यायः ॥
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