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अन्वय-भवे दानात् विभवो स्यात् शिव अनन्तज्ञानता, शीलात् रूपं बलं च पूर्वे परे अनन्तवीर्यता ॥ १४ ॥
अर्थ-दान से संसार में वैभव एवं परलोक (मोक्ष) में अनन्तज्ञानता की प्राप्ति होती है। शील से (चारित्र से) संसार में पहले रूप और बल एवं परलोक ( मोक्ष ) में अनन्तवीर्यता की प्राप्ति होती है।
आरोग्यं तपसा देहेऽप्यदेहेऽकर्मलिप्तता। सुखं सांसारिकं भावाद्भवे सिद्धे स्वभावजम् ॥ १५ ॥
अन्वय-तपसा देहे आरोग्यं अदेहे अपि अकर्मलिप्तता भावात् भवे सांसारिक सुखं सिद्धे स्वभावजम् (सुखं)॥ १५॥
अर्थ-तपाचरण से शरीर में आरोग्य लाभ होता है एवं शरीर त्याग पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्तम भावना से संसार में सांसारिक सुख एवं सिद्धपद की प्राप्ति पर स्वभाविक सुख की प्राप्ति होती है।
जिनादेनमनान्नम्यः सेव्यः सेवनया भवेत् । पूज्यः पूजनया ध्येयो ध्यानादात्माऽनया दिशा ॥ १६ ॥
अन्वय-अनया दिशा जिनादेः नमनात् आत्मा नम्यः सेवनया सेव्यः पूजनया पूज्यः ध्यानात् 'ध्येयः भवेत् ॥ १६ ॥
अर्थ-इस प्रकार जिनेश्वर भगवन्तों को नमन करने से ही यह आत्मा नमनीय, उनकी सेवा से सेव्य, पूजा से पूज्य एवं उनके ध्यान से ध्येय बनती है।
ज्ञानदानेऽक्षयं ज्ञानं सुदृष्टिदृढदर्शनात् ।। प्राणातिपाताद्विरते-रेव सिद्धेऽक्षयस्थितिः ॥ १७ ॥
अन्वय-ज्ञानदाने अक्षयं ज्ञानं दृढदर्शनात् सुदृष्टिः प्राणातिपातात् विरतेः एव सिद्धे अक्षय स्थितिः ॥१७॥
अर्हद्गीता
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