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चतुर्दशोऽध्यायः
मनोजय के उपाय
गौतम स्वामी ने वीर भगवान से पूछा है कि आयुर्वेद शास्त्र में इंगला पिंगलादि नाडियों से तथा ज्योतिष शास्त्र में दश नाड़ियों से भूत भावी को जान लेते हैं तो मन से भी भूत भावी को कैसे जाना जा सकता है ? भगवान् ने उत्तर दिया- नाभि मंडल में स्थित नाड़ियों का समूह मनोचक्र को संचालित करता रहता है। प्राणायाम एवं ध्यान से तथा आत्म भावना से मन को ब्रह्म द्वार में लीन किया जाता है।... शरीर में जब वातोद्रेक होता है तो चित्त में मलीनता स्थिरता एवं भय की व्याप्ति होती है। पित्तोदय से शरीर में चंचलता एवं साहसादि भाव उत्पन्न होते हैं। अष्टकर्मावरणों से ही शरीर में वात पित्तादि व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं । अतः अभ्यासपूर्वक मनो भावों को जान कर तत्तत् उपायों से मन को वश में करना चाहिये। उर्ध्वगति चित्त में परमात्मा साक्षात् होंगे। मन की शुद्धि एवं वशीकरण के समस्त उपाय ज्ञान क्रियान्वित हैं। मन सद्ज्ञान से सम्बद्ध है जो लोकालोक का प्रकाशक है। ज्ञान ही मोक्ष का प्रधान कारण है। कष्टसाध्य क्रिया करने पर भी ज्ञान के बिना मोक्ष सम्भव नहीं है। यह ज्ञान मन की शुद्धि एवं बुद्धि की वृद्धि के लिये होता है अतः अनित्यादि बारह भावनाओं के द्वारा मन को निर्मल करना चाहिये।]
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चतुर्दशोऽध्यायः
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