________________
अन्वय-यद् वस्तु भक्ष्यं वा अचिन्तितम् मनसा राशि संबद्ध उपानेयम् ध्येयं मनोराशिः मनोजवत् ॥ १७ ॥
अर्थ - जो वस्तु जिस राशि से सम्बन्धित हो उसी के अनुसार सहज भाव से फल सोचना चाहिए। जिस प्रकार मन के भाव के अनुसार मन की राशि जानी जाती है वैसे ही उपभोग वस्तुएं के बारे में अर्थात् मनोज्ञ पुरुषको विचार करना चाहिये ।
जल्पेद्यद्राशिमान् जीवो भवेद्यद्वा मनः प्रियम् ।
मनः शास्त्रविदा मान्य- स्तद्रा शिर्मानसस्तदा ॥ १८ ॥
अन्वय-यत् राशिमान् जीवः जल्पेत् वा मनः प्रियम् भवेत् तदा : शास्त्रविदा मानसः तत् राशिः मान्यः ॥ १८ ॥
मनः
अर्थ - जिस राशि का भाव धारण करके जीव बोलता है अथवा उसका जो इच्छित कार्य होता है उसी के अनुसार मनोशास्त्रियों के द्वारा उस के मन की राशि जानी जाती है।
अधर्मभावनाद्रात्रि दिवसो धर्मनिष्ठया ।
शुभभावनया शुक्लपक्षः कृष्णो विपर्ययात् ॥ १९ ॥
अन्वय- अधर्मभावनात् रात्रिः धर्मनिष्ठया दिवस: शुभभावनया शुक्लपक्षः विपर्यात् कृष्णः ॥ १९ ॥
अर्थ - अधर्म भावना की स्थिति में रात्रि मानी जाती है, एवं धर्म स्थिति में दिवस माना जाता है। शुभ भावना के उद्रेक में शुक्ल पक्ष तथा विपरीतावस्था में कृष्ण पक्ष माना जाता है ।
वृद्धौ नन्दा शिवे भद्रा युद्धे राज्ये जयेच्छया । योगे रिक्ता मोक्षलाभे पूर्णापूर्णेच्छाया हृदि ॥ २० ॥
•
अन्वय-वृद्धौ नन्दा शिवे भद्रा युद्धे राज्ये इच्छया जया योगे रिक्ता मोक्षलाभ हृदि पूर्णेच्छया पूर्णा ॥ २० ॥
द्वादशोऽध्यायः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
११९
www.jainelibrary.org