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मार्गी-जो ग्रह सामान्य गति से अपनी राशिपर पूरा समय
व्यतीत करता है। स्पष्टीभूते यथा भानौ ज्योतिर्मार्गप्रकाशनम् । तथा ज्ञानधर्मे सूर्ये सम्यग्मार्गनिरीक्षणम् ॥३॥
अन्वय-यथा भानौ स्पष्टीभूते ज्योतिः मार्गप्रकाशनम् तथा ज्ञानधर्मे सूर्ये सम्यग् मार्गनिरीक्षणम् ॥३॥
अर्थ-जिस प्रकार सूर्य के स्पष्ट होने पर अन्य ग्रहों का मार्ग प्रकाशित हो जाता है वैसे ही ज्ञानधर्म के सूर्य के प्रकाशित होने पर मोक्ष मार्ग स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।
ज्ञानमेव सहस्रांशु हृदि ब्रह्मामृतं परम् । ज्योतिः शास्त्रेऽपि तेनैव यथार्थं मननं भवेत् ॥ ४ ॥
अन्वय-शानमेव सहस्रांशु हृदि परं ब्रह्मामृतं तेन एव ज्योति: शास्त्रेऽपि (सहस्रांशोः) यथार्थ मननं भवेत् ॥४॥
अर्थ-ज्ञान रूप ही सूर्य है एवं यही हृदय में परम ब्रह्म एवं अमृत रूप में निवास करता है अतः ज्योतिष शास्त्र में भी इसी सूर्य का ही चिन्तन-मनन होता है।
ज्ञानं दुग्धं दधि श्रद्धा घृतं तच्चचरणं स्मृतम् । - गुरोगव्यमिदं धर्म्य धार्य चानन्तवीर्यदम् ॥ ५ ॥
अन्वय-ज्ञानं दुग्धं दधि श्रद्धा तत् चरणं घृतं स्मृतम् । गुरोः इदं धर्म्य अनन्तवीर्यदं च गव्यं धार्यम् ॥५॥
अर्थ-ज्ञान दुग्ध स्वरूप है, श्रद्धा दधि स्वरूप है एवं उन ज्ञान तथा श्रद्धानुसार आचरण करना घृत स्वरूप है। अतः गुरुसे अनन्तवीर्य प्रदायक इस धर्मरूप (ज्ञान-दर्शन-चारित्र्य ) घृत प्राप्त करना चाहिए। सप्तमोऽध्यायः
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