________________
स्थिति जानी जायगी। उसके ही तीसवे हिस्से से तिथि एवं दिन तथा बारहवे हिस्से से मास एवं होरा से पक्षों का ज्ञान हो जाता है।
नवग्रहाः नवांशेभ्यो वाराः सप्तांशलाभतः। भावाश्च राशिकुण्डल्यां भाव्याः ग्रहबलोदयात् ॥ १५ ॥
अन्वय-राशि कुंडल्यां नवांशेभ्यः नवग्रहाः सप्तांशलाभतः वाराः ग्रहबलोदयात् भावाश्च माव्याः ॥१५॥
अर्थ-चन्द्रके नवांश से नव ग्रहों का ज्ञान होता है, सप्तांश से वारों का ज्ञान तथा राशि, कुंडली से भावों का ज्ञान होता है। इस प्रकार ग्रहों के बलाबल और उदयों से भावों को समझना चाहिए ।
कुंडलीमें भाव बारह हैं-तनु, धन, सहज, सुहृत् , पुत्र, शत्रु, कलत्र, मृत्यु, धर्म, कर्म, आय, व्यय आदि ।
चन्द्रविश्ववशाविष्टाः षट्त्रिंशद्वादशाथवा । प्रति द्रेष्काणमिन्दोः स्यात् नक्षत्रं नवकं क्रमात् ॥ १६ ॥
अन्वय-पत्रिंशत् अथवा द्वादश। चन्द्रविश्ववशाविष्टाः। प्रति द्रेष्काणं इन्दोः क्रमात् नक्षत्र नवकं स्यात् ॥ १६॥ __अर्थ-चन्द्रमा की स्थिति से आविष्ट ३६ अथवा १२ संख्या (राशि) वाले प्रत्येक द्रेष्काण में चन्द्रमा के नौ नौ नक्षत्र होते हैं। जैसे :-.
अश्विनी भरणी . कृत्तिका (१) (२) (३) रोहिणी
आर्द्रा (१) (२) (३) आदौ मध्येऽवसाने वा ज्ञेयं भानां त्रयं त्रयं ।
त्रयेऽप्याद्यं चरेच्चन्द्रे द्वितीयं भं स्थिरे पुनः ॥ १७ ॥ अष्ठमोऽध्यायः
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org