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विभूषित किया गया वह धर्म कलियुग में उत्पन्न हुआ है। ( अर्थात् परमात्मा के सांसारिक स्वरूप संसार भाव युक्त जन्य ही कहे जायंगे। आध्यात्मिक दृष्टि से ये रूप मान्य नही हो सकते हैं।)
जातवेदः प्रतिष्ठाने भूसुराद्रित गौरवे । मतिर्नावति हासादौ रागी धर्मेण तत्र कः ॥११॥
अन्वय-(यत्र) जातवेदः प्रतिष्ठाने भूसुराद्रित गौरवे इतिहा. सादौ मतिः न वा तत्र धर्मेनुरागी कः ॥ ११ ॥
अर्थ-यज्ञादि (बाह्यान्तर तप) एवं ज्ञानी (ब्रह्म-ज्ञान धर्मानुसारी) के गौरव में प्रतिष्ठित हमारी ऐतिहासिक धार्मिक परंपरा में जिनकी बुद्धि नहीं है उन्हें धर्मानुरागी कैसे कहा जा सकता है ?
यत्रास्ति वामनो देवो धर्मे नाम्ना जनार्दनः । गुरौ च कण्ठमालाऽस्मिन् न्याय्यः पूज्यः कलिप्रियः ॥ १२ ॥
अन्वय-यत्र धर्म वामनः जनार्दनः नाम्ना देवः कलिप्रियः पूज्यः अस्मिन् गुरौ कण्ठमाला न्याय्यः ॥ १२ ॥
अर्थ-जिस धर्म में देवता को वामन (छोटा) एवं जनपीडाकारी (ननार्दन) नाम दिया गया। जहाँ कलहप्रिय गुरुओं को सम्मान दिया गया वैसे ही धर्म में ऐसे गुरुओं को कंठहार मानना न्याय संगत हो न सकता है ।
देवोऽस्थिधन्वा पुरुषास्थिमाला यत्र भैरवः । कापालिकाश्च गुरवः तद्धर्मे वार्तया शिवम् ॥१३॥
अन्वय-यत्र अस्थिधन्वा देवः पुरुषास्थिमाला भैरवः कापा. लिकाः च गुरवः तद्धर्मे वार्तया (एव) शिवम् ।। १३ ।।
अर्थ-जिस धर्म में हड्डियों के धनुष धारण करने वाले देवता हैं एवं रक्षक भैरव पुरुषों की मुण्ड माला धारण करने वाले हैं, जहाँ गुरु
अर्हद्गीता
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