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___ अर्थ-मन के १२ भाव ही वर्ष हैं क्योंकि वर्ष के मास भी १२ होते हैं ये ही उत्तरायण एवं दक्षिणायण दो अयन हैं मन की उर्ध्वगति को उत्तरायण एवं अधोगति को दक्षिणायन कहते हैं। ये ही छः ऋतुएं हैं जो मन के छः विकार हैं (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य) मन के द्वादश भाव ही मास हैं ये ही मन के शुक्ल एवं कृष्ण अर्थात् धर्म
और कर्म दो पक्ष हैं। इनसे ही दिन, वेला, वार, नक्षत्र तिथियाँ आदि होती हैं।
[ चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहा जाता है ] सूर्योदयान्मनोऽम्भोजे कला बोधस्य वर्धते ।। तमारभ्यैव वर्षाणां षष्टिः प्रतिकलं स्मृताः ॥ ३॥
अन्वय-सूर्योदयात् मनोऽम्भोजे बोधस्य कला वर्धते। तं आरभ्य एव प्रतिकलं वर्षाणां षष्टिः स्मृताः ॥३॥: . ..
अर्थ-सूर्योदय होने पर मन रूपी कमल में कलाओं का बोध विवर्द्धित होता है। मन की साठ कलाएं होती है ; प्रत्येक कला के अनुसार वर्ष भी साठ प्रकार के होते हैं जिनकी गणना सूर्योदय से होती हैं। वर्ष के प्रभव, विभव आदि साठ नाम हैं। ...
सष्टि की उत्पत्ति सूर्योदय से मानी जाती है अतः वार का प्रारम्भ भी सूर्यवार से माना जाता है। चैत्र शुक्ला प्रतिपदा रविवार के दिन सूर्योदय के समय अश्विनी नक्षत्र तथा मेष राशि के आदि में सभी ग्रहों की उपस्थिति में ब्रह्माजी ने सृष्टि की उत्पत्ति की। विश्व के कार्यारम्भ के साथ ही इसी समय से दिन, वार, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष, युग तथा मन्वन्तर की गिनती की जाती है।
"ज्योतिर्विदाभरण" तथा "ब्रह्मपुराण....
द्वादशोऽध्यायः
अ. गी.-८
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