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सप्तमोऽध्यायः
सद्धर्मका स्वरूप
[ अंतःमलको दूर करने के लिये तपका महत्त्व दिखाया है। तपोमय आचरण अनिवार्य समझाया है। सातवें अध्यायमें ज्योतिष शास्त्रानुगत ज्ञानमय धर्ममार्ग का विवेचन किया गया है। जैसा ज्योतिचक्र आकाश में है वैसा ही ज्ञानचक्र हृदय में निवास करता है। ब्रह्माण्ड में जैसे सूर्य के प्रकाशित होने पर ज्योतिचक्र प्रकाशित होता है वैसे ही ज्ञानधर्ममय सूरज के प्रकाशित होने पर विवेकमार्ग का पता लगता है। रूपकसे समझें तो धर्म रूपी गाय का ज्ञान दूध है, श्रद्धा (दर्शन) दही है एवं चारित्र घी है। ये तीनों ही आत्माको अनन्त वीर्यत्व प्रदान करने वाले हैं। ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरूओं की सेवना, श्रद्धा (दर्शन) की पुष्टि के लिए देवदर्शनादि उपासना करनी चाहिए।
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अन्त में ज्योतिष शास्त्रानुसार मनःस्थिति का विवेचन करते हुए यह संदेश दिया गया है कि हठात् अधर्म की प्रवृत्ति में युक्त अवश चित्त को महान दुःखका कारण दिखाया है एवं जिसका मन धर्म के वश में है सारा संसार उसी के वश में होता है।
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सप्तमोऽध्यायः
अ, गी.-५
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