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षष्ठोऽध्यायः
श्री गौतम उवाच ऐश्वर्येण धनुर्वेदे ज्योतिःशास्त्रेऽपि गारूडे । आयुर्वेदे शाकुने वा कथं धर्म प्रधानता ॥१॥
अन्वय-धनुर्वेदे ज्योतिःशास्त्रे गारूडे अपि आयुर्वेदे शाकुने वा ऐश्वर्येण कथं धर्म प्रधानता ॥१॥
श्री गौतमस्वामी ने पूछाअर्थ-धनुर्विद्या, ज्योतिषशास्त्र, मंत्रशास्त्र, आयुर्वेद एवं शकुनशास्त्र अथवा धर्म में ऐश्वर्य से प्रधानता क्यों मानी जाती है ?
सर्वशास्त्रोदिते यत्ने फलं देवानुसारतः। तदनुगुण्यं धर्मेण तद्वैगुण्यं विपर्ययात् ॥ २॥
अन्वय-सर्वशास्त्रोंदिते यत्ले (कृतेऽपि) फलं दैवानुसारतः तत् (फलं) धर्मेण अनुगुण्यं विपर्ययात् तत् वैगुण्यम् ॥२॥
अर्थ-संसार के अन्य सर्वशास्त्रानुसार प्रयत्न करने पर भी फल तो भाग्य पर निर्भर होता है पर वह फल धर्म से सुलभतया प्राप्य है एवं अधर्म से फल प्राप्ति में बाधा आती है।
छात्रः पात्रधिया पाठयमानोऽपि विक्षां मुखात् । एको नारदवत् क्षाताऽज्ञाता पर्वतवत्परः॥३॥
अन्वय-विदुषां मुखात् पात्रधिया पाठयमानोऽपि एको छात्रः नारदवत् ज्ञाता, परः पर्वतवत् अज्ञाता ॥३॥
अर्थ-विद्वान् गुरू के मुख से समान रूप से पढ़ाए जाते हुए छात्रों में से एक नारद की भाँति ज्ञाता एवं दूसरा पर्वत की तरह जड़ ही रहता है ।
शुभाशुभफलं चैतचेतसा सुविमृश्यताम्। तुल्येऽपि साधने हेतुं विनाभेदः फले कुतः ॥४॥
अहंद्गीत
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